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| भद्रबाहु संहिता |
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भी तेजी-मन्दीका विचार वर्ष प्रबोध' नामक ग्रन्थमें विस्तारसे किया गया है। यहाँ संक्षेप में कुछ प्रमुख योर्गोका निरूपण किया जायगा।
द्वादश पूर्णमासियों का विचार-चैत्रकी पूर्णमासीको निर्मल आकाश हो तो किसी भी वस्तुसे लाभकी सम्भावना नहीं रहती है। यदि इस दिन ग्रहण, भूकम्प, विद्युत्पात, उल्कापात केतूदय और वृष्टि हो तो धान्यका संग्रह करना चाहिए। गेहूँ, जौ, चना, उड़द, मूंग, सोना, चाँदी आदि पदार्थोंक इस पूर्णिमाके सातवें महीनेके उपरान्त लाभ होता है। वैशाखी पूर्णिमाको आकाशके स्वच्छ रहने पर सभी वस्तुएँ तीन महीनों तक सस्ती होती हैं। गेहूँ, चना, वस्त्र, सोना आदिका भाव प्रायः सम रहता है। बाजारमें अधिक घटा-बढ़ी नहीं होती। यदि इस पूर्णिमाको चन्द्रपरिवेष, उल्कापात, विद्युत्पात, भूकम्प, वृष्टि, केतूदय या अन्य किसी भी प्रकारका उत्पात दिखलाई पड़े तो धान्यके साथ कपास, वस्त्र, रूई आदि पदार्थ तेज होते हैं। जूटका भाव भी ऊँचा उठता है। गेहूँ, मूंग, उड़द, चनाका संग्रह भाद्रपद मासमें ही लाभ देता है। सभी प्रकारके अन्नोंका संग्रह लाभ देता है। चावल, जौ, अरहर, कांगुनी, कोंदो, मक्का आदि अनाजोंमें दुगुना लाभ होता है। सोना, चाँदी, माणिक्य, मोती इन पदार्थों का मूल्य कुछ नीचे गिर जाता है। वैशाखी पूर्णिमाकी मध्यरात्रिमें जोरसे बिजली चमके और थोड़ी-सी वर्षा होकर बन्द हो जाय तो आगामी माघ मासमें गुड़के व्यापारमें अच्छा लाभ होता है। अनाजके संग्रहमें भी लाभ होता है। इस पूर्णिमाके प्रात:काल सूर्योदय के समय बादल दिखलाई पड़ें तथा आकाशमें अन्धकार दिखलाई पड़े तो अगहन महीनेमें घी और अनाजमें अच्छा लाभ होता है। यों तो सभी महीनोंमें उक्त पदार्थों में लाभ होता है, किन्तु घी, अनाज और गुड़-चीनीमें अच्छा लाभ होता है। वैशाखी पूर्णिमाको स्वाति नक्षत्रका चतुर्थ चरण हो तथा शनिवार या रविवार हो तो उस वर्षमें व्यापारियोंको लाभ के साथ हानि भी होती है। बाजारमें अनेक प्रकारकी घटा-बढ़ी चलती है। ज्येष्ठ पूर्णिमाको आकाश स्वच्छ हो, बादलोंका अभाव रहे, निर्मल चाँदनी वर्तमान में रहे तो सुभिक्ष होता है, साथ ही अनाजमें साधारण लाभ होता है। बाजार सन्तुलित रहता है, न अधिक ऊँचा ही जाता है और न नीचा ही। जो व्यक्ति ज्येष्ठ पूर्णिमाकी उक्त स्थितिमें धान्य, गुड़का संग्रह करता है, वह भाद्रपद और आश्विनीमें लाभ उठाता है। गेहूँ, चना,