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भद्रबाहु संहिता
(कृत्तिकानां मघानां च) कृतिका, मघा और (रोहिणानां विशाखयोः) रोहिणी, विशाखा (उत्तरेण) उत्तर के हो तो (महाधान्यं दक्षिणे) महाधान्य की वृद्धि और दक्षिण के हो तो (कृष्णधान्यञ्च) काले धान्य की वृद्धि होती है।
भावार्थ-कृत्तिका, मघा, रोहिणी, विशाखा उत्तर के हो तो महाधान्य की वृद्धि और दक्षिण में हो तो काले धान्य की वृद्धि होती है।॥४८॥
यस्य देशस्य नक्षत्रं न पीड्यन्ते यदा यदा।
तं देशं भिक्षवः स्फीताः संश्रयेयुस्तदा तदा॥४९॥ (यस्य देशस्य नक्षत्र) जिस देश के नक्षत्र (यदा यदा न पीडयन्ते) जिस-जिस देश को पीड़ा नहीं देते है (तं देशं भिक्षव: स्फीताः) उस देश के साधु लोग (संश्रयेयुस्तदा तदा) तब-तब आश्रय ले लेवे।
भावार्थ-जिस भी देश का ग्रह पीड़ित नहीं करता हो उसी देश का साधुजन आश्रय ले लेवे॥४९॥
धान्यं वस्त्रमिति ज्ञेयं तस्यार्थं च शुभाशुभम्।
ग्रह नक्षत्र संप्रत्य कथितं भद्रबाहुना ।। ५०॥ (ग्रह नक्षत्र संप्रत्य) ग्रह नक्षत्रों के (शुभाशुभम्) शुभाशुभ योग से (धान्यं वस्त्रमिति) धान्य वस्त्रादिक के भाव (ज्ञेयं) जानना चाहिये (कथितं भद्रबाहुना) भद्रबाहु स्वामी ने ऐसा कहा है।
___ भावार्थ-ग्रह नक्षत्र के शुभाशुभ को जानकर भद्रबाहु स्वामी ने धान्य और वस्त्रों की तेजी मन्दी कही है उसी प्रकार जानना चाहिये॥५०॥
विशेष—अब इस अध्याय में वस्तुओं के तेजी मन्दी का वर्णन आचार्य करते है, समस्त तेजी मन्दी नक्षत्र और ग्रहोंके शुभाशुभ पर निर्भर है प्रात: उठते ही ग्रह और नक्षत्रों को देखे।
ग्रह और नक्षत्र को देखनेपर ज्योतिषी को गेहूँ, चना, उडद, मूंग आदि धान्य, सोना, चाँदी आदि धातुएँ, वस्त्रादिक और चावल, दूध, मधु, कंगुनी आदि घी, तेलादि, पुष्पादिक के भाव तेजी मन्दी मालूम पड़ते है।