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| चतुर्विंशतितमोऽध्यायः
राशि में स्थित हों और यदि शुक्र उन्हें देखता हो तो वे अधिक अच्छी वर्षा करते हैं। क्रूर ग्रहोंसे अदृष्ट और अयुत (भिन्न) गुरु और शुक्र एकत्र स्थित हों और यदि शुक्र उन्हें देखता हो तो वे उत्तम वर्षा करते हैं। शुक्र और चन्द्रमा या मंगल और चन्द्रमा आदि एक राशिपर स्थित हो तो सर्वत्र वर्षा होती है, और फसल भी उत्तम होती है। सूर्यके सहित बृहस्पति यदि एक राशिपर स्थित हो तो जब तक वह अस्त न हो जाय, तब तक वर्षाका श्रीग समझना चाहिए। शनि और मंगलका एक राशिपर होना महावृष्टिका कारण होता है। इस योगके होनेसे दो महीने तक वर्षा होती है, पश्चात् वर्षामें रुकावट उत्पन्न होती है। सौम्य ग्रहोंसे अदृष्ट
और अयुत शनि और मंगल यदि एक स्थानपर स्थित हों तो वायुका प्रकोप और अग्निका भय होता है। एक राशि या एक ही नक्षत्रपर राह और मंगल आजायें तो दोनों वर्षाका नाश करते हैं। गुरु और शुक्र यदि एकत्र स्थित हो तो असमयमें वर्षा होती है। सूर्य से आगे शुक्र या बुध जायें तो वर्षाकालमें निरन्तर वर्षा होती रहती है। मंगल के आगे सूर्यकी गति हो तो वह वर्षाको नहीं रोकता है। किन्तु सूर्यके आगे मंगल हो तो वर्षाको तत्काल रोक देता है। बृहस्पतिके आगे शुक्र हो तो अवश्य वृष्टि करता है; किन्तु शुक्रके आगे बृहस्पति हो तो वर्षाका अवरोध होता है। बुधके आगे शुक्रके होने से महावृष्टि और शुक्रके आगे बुधके होने पर अल्पवृष्टि होती है। यदि दोनोंके मध्यमें सूर्य या अन्य ग्रह आजायें तो वर्षा नहीं होती। अनिश्चित मार्गसे गमन करता हुआ बुध यदि शुक्रको छोड़ दे तो सात दिन या पाँच दिन तक लगातार वर्षा होती है। उदय या अस्त होता हुआ बुध यदि शुक्रसे आगे रहे तो शीघ्र ही वर्षा पैदा करता है। जल नाड़ियोंमें आने पर यह अधिक फल देता है। बुध, बृहस्पति और शुक्र वे तीनों ग्रह एक ही राशिपर स्थित हों और क्रूर ग्रहोंसे अEष्ट और अयुत हों तो इन्हें महावृष्टि करनेवाले समझने चाहिए। शनि, मंगल और शुक्र तीनों एक राशिपर स्थित हों और गुरु इन्हें देखता हो तो निसन्देह वर्षा होती है। सूर्य, शुक्र और बुध इनके एक राशिपर होनेसे अल्पवृष्टि होती है। सूर्य, शुक्र और बृहस्पतिके एक राशिपर रहनेसे अतिवृष्टि होती है। शनि, शुक्र और मंगलके एकत्र होते हुए गुरुसे देखे जानेपर साधारण वर्षा होती है। शनि, राहु और मंगल ये तीनों एक राशिपर स्थित हों तो ओलेके साथ वर्षा होती है।