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चतुर्विंशतितमोऽध्यायः
भावार्थ-जब ग्रहों के साथ युद्ध हो व परस्पर प्रवेश करे तो दक्षिण के सभी प्राणियों को व उत्तर के अण्डजपक्षियों का घात होता है॥२८॥
ग्रही गुरु बुधौ विन्द्यादुत्तरद्वारमाश्रितौ। शुक्र सूर्यों तथा पूर्वा राहु भौमौ च दक्षिणाम्॥२९॥ अपरां चन्द्रसूयौं तु मध्ये केतुमसंशयम्।
क्षेमङ्करो ध्रुवाणां च यायिनां च भयङ्करः॥३०॥ (उत्तरद्वारमाश्रितौ) उत्तर द्वार का आश्रय लेकर (गुरु बुधौग्रहो) गुरु और बुध ग्रह युद्ध करे वा (शुक्र सूर्यो तथा पूर्वा) पूर्व में शुक्र और सूर्य का युद्ध हो (राहुभौमों च दक्षिणम्) वा राहु और मंगल का दक्षिण में युद्ध हो (अपरांचन्द्रसूर्योतु) पश्चिम में सूर्य और चन्द्र का युद्ध हो (मध्य केतुमसंशयम) मध्यम केतु का युद्ध हो तो (ध्रुवाणं च क्षेमकरो) स्थायियों को क्षेम और (यायिनां च भयङ्करः) आने वाले के लिये भयंकर होता है।
__ भावार्थ-उत्तर में यदि ग्रह गुरु और बुध युद्ध करे, पूर्व में शुक्र और सूर्य युद्ध करे,दक्षिण में राहु और मंगल युद्ध करे ,पश्चिम में चन्द्र और सूर्य युद्ध करे मध्यम में केतु युद्ध करे तो नगरनिवासियों को क्षेम होता है, और आक्रमणकारी आने वाले को भयंकर होता है।। २९-३० ।।
अहश्च पूर्वसन्ध्या च स्थावर प्रति पुद्गलाः।
रात्रिश्चापरसन्ध्या च यायिनां प्रति पुद्गलाः॥३१॥ (अहश्च पूर्व सन्ध्या च) दिन और रात्रि की सन्ध्या (स्थावर प्रति पुदगला:) स्थायी निवासियों के लिये प्रति पुद्गल है और (रात्रिश्चापरसन्ध्या च) रात्रि और अपर सन्ध्या (यायिनां प्रति पुद्गलाः) आने वाले के लिये प्रति पुद्गल है।
भावार्थ—दिन और रात्रि की सन्ध्या स्थायीयों के लिये प्रतिपुद्गल तो रात्रि और अपर सन्ध्या आने वाले के लिये प्रतिपुद्गल है॥३१॥
रोहिणी च ग्रहो हन्यात् द्वौ वाऽथ बहवोऽपि वा।
अपग्रहं तदा विन्द्याद भयं वाऽपि न संशयः॥३२॥ (रोहिणी च ग्रहो हन्यात) रोहिणी नक्षत्र को ग्रह घात करे (द्वौ वाऽथ बहवोऽपि