________________
चतुर्विंशतितमोऽध्यायः
अथात: संप्रवक्ष्यामि ग्रहयुद्धं यथा तथा।
जन्तूनां जायते येन तूर्ण जय पराजयौ॥१॥ (अभातः संप्रतक्ष्यामि) अब मैं कहता हूँ (ग्रह युद्धं यथा) ग्रहों के युद्ध को (तथा) उसके कारण (जन्तुनां) जीवों की (तूर्णं) शीघ्र (जायते जयपराजयौयेन) जय पराजय होती है।
भावार्थ-अब मैं ग्रहों के युद्ध को जैसे का तैसा कहता हूँ, इन ग्रहों के युद्ध से प्राणियों की शीघ्र जय पराजय होती है।।१॥
गुरुः सौरश्च नक्षत्रं बुधार्कश्चैव नागराः। ___ केतुरङ्गारकः सोमो राहुः शुक्रश्च यायिनः ॥२॥
(गुरुः सौरश्च नक्षत्र) गुरु, शनि, नक्षत्र (बुधार्कश्चैवनागरा:) बुध और सूर्यकी (नागरा:) नागर संज्ञा है एवं (केतुरङ्गारकः सोमो) केतु, अंगारक चन्द्र (राहुः शुक्रश्च) राहु, शुक्र की (यायिनः) यायि संज्ञा है।
भावार्थ-गुरु, शनि, नक्षत्र, बुध और सूर्य की नागर संज्ञा है, एवं केतु, अंगारक, चन्द्र, राहु, शुक्र की यायि संज्ञा है।॥२॥
श्वेतः पाण्डुश्चपीतश्च, कपिलः पद्मलोहितः।
वर्णास्तु नागरा ज्ञेया ग्रहयुद्धे विपश्चितैः॥३॥ (ग्रहयुद्धेविपश्चितैः) ग्रहयुद्ध में महापुरुषों ने (श्वेतः पाण्डश्च) सफेद, पाण्डु (पीतश्च) पीला, (कपिलः) कपिल: (पालोहितः) लाल पद्म (वर्णास्तु नागरा ज्ञेया) का वर्ण नागर संज्ञा जानना चाहिये।
भावार्थ-ग्रह युद्ध में मनीषियों ने सफेद, पाण्डु, पीला, कपिल, लालपद्य, का वर्ण नागर संज्ञा वाला है।।३।।