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भद्रबाहु संहिता
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(सुचारदुश्चार संमप्रचारम्) सुचार और दुश्वार दोनों होते हैं (चर्यायुत: खेचर सुप्रणीते) जो साधु इस प्रकार चन्द्रमा की चर्या को जानता है (यो वेदभिक्षुः सचरेन्नृपाणाम्) वो निमित्तज्ञ व शास्त्रों का जानकार साधु राजाओं के बीच अच्छी तरह से विहार करता है।
भावार्थ-चन्द्रमा के आकाश में विचरण करने पर सुचार और दुधार दोनों ही होते हैं, जो साधु चन्द्रमा के संचार को अच्छी तरह जाता है। वह राजाओं के बीच में अच्छा विहार कर सकता है, वही साधु वेदज्ञ है।।५८॥
विशेष वर्णन-रात्रि में चन्द्रमा का उदय होता है, प्रत्येक महीने में चन्द्रमा के वर्ण, संस्थान, प्रमाण आदि को देखता है, वो भी शुभाशुभ को जान सकता
यदि चन्द्रमा स्निग्ध, सफेद वर्ण का विशालाकार और पवित्र है, तो उसको शुभ माना है।
चन्द्रमा का लक्षण शुभाशुभ दोनों प्रकार होता है, चन्द्रमा का श्रृंग दिशाओं के अनुसार व वर्णों के अनुसार फल देखा जाता है।
अगर चन्द्रमा का श्रृंग उत्तर दिशा की ओर उठा हुआ तो अश्मक, भरत, उडू, काशी, कलिंग, मालव व दक्षिण वासियों का घात करता हैं।
___उसी प्रकार दक्षिण की ओर उठा हुआ चन्द्रमा का शृंग क्षत्रिय, यवन, वाह्रीक हिमाचल निवासी, युगन्धर और कुरु निवासियों तथा ब्राह्मणों का घात करता है।
तिथियों के अनुसार चन्द्रमा की कला घटती बढ़ती है, कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा की कला घटती है और शुक्ल में बढ़ती है।
यदि चन्द्रमा विकृत दिखता है तो दुर्भिक्ष और भय को प्रजा को कष्ट होता
यहाँ कुछ नक्षत्रों के अनुसार भी चन्द्रमा का फल बताते हैं।
जैसे-ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में दाहिने भाग में यदि चन्द्रमा हो तो बीज, जल और वन की हानि होती है।
विशाखा और अनुराधा के दायें भागे में चन्द्रमा हो तो वह पाप चन्द्रमा है पाप चन्द्रमा जगत् में भय उत्पन्न करता है। इसी प्रकार अन्य से भी जानो।