________________
अयोर्विशतितमोऽध्यायः
भावार्थ-अगर सप्तमी का चन्द्रमा घातित होता है। तो धनिक लोग नाई, धोबी आदि को पीड़ा होती है, और आगेत रोग उत्पन्न होते है |
विवर्णपुरुषश्चन्दः स्त्रीणां राजा निषेवते।
कपिलोऽपि दक्षिणे मार्गे विन्द्यादग्नि भयं तथा॥२१ ।। (विवर्णश्चन्द्रः) यदि चन्द्रमा विवर्ण हो तो (पुरुष:) पुरुष (स्त्रीणां) स्त्री को (राजानिषवते) राजा सेवन करता है (कपिलोऽपि दक्षिणे मार्गे) अगर कपिल वर्ण का चन्द्रमा दक्षिणमार्ग में हो तो (तथा) तथा (अग्नि भयं विन्द्याद्) अग्नि भय होगा।
भावार्थ-यदि चन्द्रमा विवर्ण दिखे तो राजा, पुरुष और स्त्रियों का सेवन करता है। वही चन्द्रमा कपिल वर्ण का दिखे और दक्षिण मार्ग का हो, तो अग्नि भय होगा ॥२१॥
सन्ध्यायां कृत्तिका ज्येष्ठां रोहिणी पितृदेवताम्।
चित्रां विशाखां मैत्रं च चरेद् दक्षिणत: शशी॥२२॥ (सन्ध्यायां) सन्ध्याकाल में (कृत्तिकां) कृत्तिका नक्षत्र (ज्येष्ठां) ज्येष्ठ नक्षत्र (रोहिणी) रोहिणी (पितृदेवताम्) मघा (चित्रां) चित्रा (विशाखां) विशाखा (मैत्रं च) और अनुराधा का (शशी) चन्द्रमा (दक्षिणत: चरेद) दक्षिण में विचरण करता है।
भावार्थ-सन्ध्याकाल में कृत्तिका, ज्येष्ठा, रोहिणी, मघा, चित्रा, विशाखा और अनुराधा का चन्द्रमा दक्षिण में विचरण करता है ॥२२॥
सर्वभूतभयं विन्धात् तथा घोरं तु मासिकम्।
सस्यं वर्ष च वर्धयते चन्द्रस्तद् वद् विपर्ययात्॥२३।। (चन्द्रस्तद् वद् विपर्ययात्) उसी के समान चन्द्रमा के विपरीत होने पर (सर्वभूत भयं विन्द्यात्) सब जीवों को भय होता है (तथा घोर तु मासिकम्) तथा एक महीने में घोर भय होता है (सस्यं वर्ष च वर्धयते) धान्यों की वृद्धि होती है, अच्छी वर्षा होती है।