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ज्योविंशतितमोऽध्यायः
(पूर्णिमायां हते चन्द्रे) पूर्णिमा का चन्द्रमा (ऋक्षे वा विकृतप्रभे) विकृत प्रभा वाला होकर नक्षत्र का घात करता है तो (नृपा भृत्यैविरुध्यन्ते) राजा, नौकर में विरोध पड़ता है (राष्ट्रं चौरेविलुण्ठ्य ते) और देश में चोरों का जोर बढ़ता है।
भावार्थ- यदि पूर्णिमा का चन्द्रमा प्रभा रहित होकर नक्षत्र का घात करता है। तो राजा और नौकरों में विरोध पड़ेगा, चौरों का जोर बढ़ जाता है॥१४॥
ह्रस्वो रूक्षश्च चन्द्रश्च श्यामश्चापि भयावहः।
स्निग्धः शुक्लो महान् श्रीमांश्चन्द्रो नक्षत्रवृद्धये ॥ १५॥ (ह्रस्वो रूक्षश्च) ह्रस्व, रूक्ष और (श्यामश्चापि) काला भी (चन्द्रश्च) चन्द्रमा (भयावहः) भय उत्पन्न करता है (स्निग्ध: शुक्लो महान् श्रीमांश्चन्द्रो) स्निग्ध और शुक्ल चन्द्रमा महान होता है (नक्षत्रवृद्धये) नक्षत्रों की व धन ऐश्वर्य सुख सम्पदा की वृद्धि करता है।
भावार्थ-हस्व रूक्ष और काला चन्द्रमा भय उत्पन्न करता है। स्निग्ध शुक्ल चन्द्रमा महान होता है। जो धन सुख आदि की वृद्धि करता है।।१५।।
श्वेत:पीतश्च रक्तश्च कृष्णश्चापि यथाक्रमम्।
सुवर्ण सुखदश्चन्द्रो विपरीतो भयावहः ॥१६॥ (श्वेत: पीतश्च रक्तश्च) सफेद, पीला, लाल और (कृष्णश्चापि यथाक्रमम्) यथा क्रम से काला ये चारों वर्गों के लिये सुखद है (सुवर्ण सुखदश्चन्द्रो) सुवर्ण का चन्द्रमा सुख उत्पन्न करता है (विपरीतो भयावह:) उससे विपरीत चन्द्रमा भयावह
भावार्थ-सफेद, पीला, लाल और काला चन्द्रमा चारों वर्गों के लिये क्रमशः सुख उत्पन्न करता है। सुवर्ण वर्ण का चन्द्रमा सुख उत्पन्न करता है, उससे विपरीत चन्द्रमा भयावह है।॥ १६ ॥
चन्द्रे प्रतिपदि योऽन्यो ग्रहः प्रविशतेऽशुभः।
संग्रामो जायते तत्र सप्तराष्ट्र विनाशनः ॥१७॥ यदि (प्रतिपदि) प्रतिपदाको (चन्द्रे) चन्द्रमा में (योऽन्यो) अन्य (अशुभ)