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भद्रबाहु संहिता ।
भावार्थ-यदि चन्द्रमा की शिखा उत्तर की ओर हो तो अस्मक, भरत, उत्तरकाशी, कलिङ्ग, मालव और दक्षिण द्वीप के वासियों को मारता है॥३॥
क्षत्रियान् यवनान् बाह्नीन् हिमवच्छृङ्गमास्थितान् ।
युगन्धर कुरून् हन्याद् ब्राह्मणान् दक्षिणोन्नतः॥४॥ यदि उसी चन्द्रमा का शृंग (दक्षिणोन्नतः) दक्षिण में उन्नत हो तो (क्षत्रियान्) क्षत्रियों को (यवज्ञान पवनों का बासीन्) वालाको (हिमवच्छ्रामास्थितान्) हिमवत पर्वत के ऊपर रहने वालों को (युगन्धर) युगन्धर और (कुरून) करु व (ब्राह्मणान्) ब्राह्मणों को (हन्याद) मारता है।
भावार्थ-जब चन्द्रमा की शिखा दक्षिण में उठी हुई हो तो क्षत्रिया, यवन, वाह्रीक हिमाचल पर रहने वाले, युगन्धर और कुरु और ब्राह्मणों का नाश करता है।।४।।
भस्माभो निः प्रभोरुक्षः श्वेत भंगोऽतिसंस्थितः।
चन्द्रमा न प्रशस्येत् सर्ववर्ण भयङ्करः ॥५॥ (भस्माभो) भस्म के समान आभा वाला, (नि:प्रभो) प्रभा रहित (रूक्षः) रूक्ष (श्वेत) सफेद (भृगोऽतिसंस्थितः) अति उन्नत शिखा वाला (चन्द्रमा न प्रशस्येत्) चन्द्रमा प्रशस्त नहीं है वह (सर्ववर्ण भयङ्करः) सभी वर्गों के लिये भयंकर है!
भावार्थ-यदि भस्मके समान आभावाला चन्द्रमा हो प्रभारहित हो रूक्ष हो सफेद हो, और अति उन्नत शिखावाला हो, तो वह चन्द्रमा प्रशस्त नहीं है। सभी वर्गों के लिये भयंकर है॥५॥
शबरान् दण्डकानुड्रान् मद्रांश्च द्रविडांस्तथा। शूद्रान् महासनान् वृत्यान् समस्तान् सिन्धुसागरान्॥६॥ अनर्त्तान्मलकीरांश्च कोकणान् प्रलयम्बिन्ः। रोमवृत्तान् पुलिन्द्रांश्च मारुश्वभ्रं च कच्छजान्॥७॥ प्रायेण हिंसते देशानेतान् स्थूलस्तु चन्द्रमाः।।
समे शृङ्गे च विद्वेष्टी तथा यात्रां न योजयेत्॥८॥ (स्थूलस्तु चन्द्रमा:) स्थूल चन्द्रमा (शबरान) शबर, (दण्डकानुड्रान्) दण्डक,