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द्वाविंशतितमोऽध्यायः
(कोशवाहन वृद्धये) कोश वाहन की वृद्धि करता है (चित्र: सस्य विनाशाय) चित्रवर्ण का सूर्य धान्यों का विनाश करता है (च) और वह (रविः) सूर्य (भयाय स्मृतः) भय उत्पन्न करता है।
भावार्थ-शृङ्गी वर्ण का सूर्य राजा को विजय देने वाला और कोशवाहन वृद्धि करता है। चित्र-विचित्र वर्णका सूर्य धान्यों का नाश करता है। और भय उत्पन्न करता है।। १७॥
अस्ताते यदा सूर्ये चिरं रक्ता वसुन्धरा।
सर्वलोक भयं विन्द्यात् तदा वृद्धानुशासने॥१८॥ (यदा) जब (सूर्ये) सूर्य (अस्ताते) अस्त होने के समय (वसुन्धरा चिरं रक्ता) यह पृथ्वी चिरकाल तक रक्त वर्ण की दिखे तो (तदा) तब (वृद्धानुशासने) महापुरुर्षों के कहे अनुसार (सर्वलोकभयं) सर्व लोक में भय उपस्थित होगा (बिन्धात्) ऐसा जानो।
भावार्थ-जब सूर्यास्त के समय बहुत काल तक पृथ्वी रक्त वर्ण की रहे, तो निमित्तज्ञों के कहे अनुसार सब लोक में भय उत्पन्न होगा ।। १८॥
उदयास्तमने ध्वस्ते यदा वै कुरुते रविः।
महाभयं तदानीके सुभिक्षं क्षेममेव च।१९।। (यदा) जब (रविः) सूर्य (उदयास्तमने) उदय हो तो समय या अस्त होते समय (ध्वस्ते) ध्वस्त करे तो (तदा) तब (नीके) सेना में (महाभयं) महाभय होता है। (सुभिक्ष क्षेम मेव च) और निश्चित ही क्षेम कुशल होता है।
भावार्थ-जब सूर्य उदय या अस्त होने के समय ध्वस्त करे तो राजा की सेना में महाभय होगा, और सुभिक्ष और क्षेम कुशल होगा ।। १९ ।।
एतान्येव तु लिङ्गानि पर्वण्यां चन्द्र सूर्ययोः।
तदा राहुरिति शेयो विकारच न विद्यते।। २०॥ (पर्वण्यां) अमावस्या या पूर्णिमा को (चन्द्र सूर्ययोः) चन्द्र या सूर्य पर (एतान्येव तु लिबानि) उपर्युक्त चिह्न दिखाई पड़े तो (तदा) तब (ज्ञेयो) समझो की (राहुरिति) राहु का आगमन है (विकारश्च न विद्यते) इसमें विकार नहीं होता है।