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भद्रबाहु संहिता
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___काश्यप श्वेतकेतु-काश्यप श्वेतकेतु तो रूक्षा, श्याम वर्ण और जटाकी-सी आकृति का होता है। यह आकाश के तीन भाग को आक्रमण करके बाँयी ओर लौट जाता है। यह इन्द्रांश शिखी ११५ वर्ष तक प्रवासित रहकर सहज पद्मकेतु की गति के अन्त में दिखाई देता है। यह जितने महीने विडमी ने उतने ही वर्ष सुभिक्ष रहता है। किन्तु मध्य देश के आर्यों का और औदीच्यों का नाश करता
आवर्तकेतु-श्वेतकेतु के समाप्त होने पर पश्चिम में अद्धरात्रि के समय शंख की आभा वाला आवर्तकेतु उदय होता है। यह केतु तिने मुहूर्त तक दिखायी दे, उतने ही महीनों तक सुभिक्ष करता है। यह सदा संसार में यज्ञोत्सव करता
रश्मि केतु-काश्यप श्वेतकेतु के समान यह रश्मिकेतु फल देता है। यह कुछ धूम्रवर्ण की शिखा के साथ कृत्तिका के पीछे दिखाई देता है। विभावसु से पैदा हुआ रश्मिकेतु १०० वर्ष प्रोषित रहकर आवर्त केतु की गति के अन्त में कृत्तिका नक्षत्रके समीप दिखायी देता है।
वसाकेतु, अस्थिकेतु, शस्त्रकेतु-वसाकेतु अत्यन्त स्निग्ध, सुभिक्ष और महामारीप्रद होता है। यह १३० वर्ष प्रवासित रहकर उत्तरकी ओर लम्बा होता हुआ उदय होता है। वसाकेतु के समान अस्थिकेतु रूक्ष हो तो क्षुद् भयावह होती (भूखमरी पड़ती है)। पश्चिम में बसाकेतु की समानता का दिखता हुआ शस्त्रकेतु महामारी करता है।
कुमुदकेतु-कुमुद की आभा वाला, पूर्व की तरफ शिखा वाला, स्निग्ध और दुग्ध की तरह स्वच्छ कुमुदकेतु पश्चिम में वसा केतु की गति के अन्त में दिखाई देता है। एक ही रात में दिखाई दिया हुआ यह सुभिक्ष और दस वर्ष तक सुहृद्भाव पैदा करता है, किन्तु पाश्चात्य देशों में कुछ रोग उत्पन्न करता है।
कपाल किरण-कपाल केतु प्राची दिशा में अमावस्या के दिन उदय हुआ आकाश के मध्य में धूम्र किरणों की शिखा वाला होकर रोग, वृष्टि, भूख और मृत्यु को देता है। यह १२५ वर्ष प्रवास में रहकर अमृतोत्पन्न कुमुद केतु के अन्त