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भद्रबाहु संहिता |
मानुषः पशु पक्षिणां समयस्ताप संक्षयें।
विषाणि इंष्ट्रिघाताय सस्यघाताय शंकरः॥११।। (मानुष: पशुपक्षिणां) मनुष्य, पशु, पक्षीयों के लिये (समयस्ताप संक्षये) समयानुसार सारतांप देता है और क्षय को प्राप्त कराता है (विषाणिदृष्ट्रि घाताय) सिंग वाला हो तो दाँत वाले जीवों का घात करता है और (सस्य घाताय शंकरः) धान्यों के घात के लिये मानो रुद्र है।
भावार्थ-उपर्युक्त प्रकार का केतु मनुष्य, पशु, पक्षीयों का घात करता है, ताप देता है, क्षय करता है, दाँत वाले व विष वालों का घात करता है। और धान्यों के घात को तो मानों शंकर ही हैं।॥ ११॥
अङ्गारकोऽग्निसङ्काशो धूमकेतुस्तु धूमवान।
नील संस्थान संस्थानोवैडूर्य सदृश प्रभः॥१२॥ (अगरकोऽग्निसङ्काशो) अग्नि के समान केतु अंगारक कहलाता है, (धूमकेतुस्तु धूमवान) धुएँ वाला केतु धूमकेतु कहलाता है, (नीलासंस्थान संस्थानो) नीला धूमकेतु की (वैडर्य सदृश: प्रभः) वैडुर्य मणि की प्रभा वाला।
भावार्थ-अग्नि के समान केतु अंगारक कहलाता है, और धूम्रवर्ण का हो तो धूमकेतु कहलाता है। नीले संस्थान से युक्त केतु वैडुर्य मणिकी प्रभा वाला होता है।। १२ ।।
कनकाभा शिखायस्य स केतुः कनकः स्मृतः।
यस्योर्ध्वगा शिखा शुक्ला स केतु श्वेत उच्यते॥१३॥ (यस्य केतु) जिस केतुकी (शिखा) शिखा (कनकाभा) सुवर्ण की आभा वाली हो (स) उसको (कनकः स्मृत:) कनक केतु कहते हैं (यस्य) जिसकी (शिखा) शिखा (उर्ध्वगा) ऊपर हो (शुक्ला) सफेद हो (स) उसको (श्वेत केतु उच्यते) श्वेत केतु कहते हैं।
भावार्थ-जिस केतु की शिखा सुवर्ण वर्ण की हो उसको कनक केतु कहते हैं। और जिसकी शिखा सफेद और ऊर्ध्व में हो तो उसे श्वेत केतु कहते हैं।।१३।।