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भद्रबाहु संहिता
कमी धातुओं के मूल्य में वृद्धि एवं उच्च वर्ग के व्यक्तियों को सभी प्रकार से सुख प्राप्त होता है। बुध की लि. गति मध्यप्रदेश और मध्य भारत के निवासियों के लिए अधिक शुभ होती हैं उक्त राज्यों में उत्तम वृष्टि होती हैं और फसल भी अच्छी होती हैं। पुष्य, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में संक्षिप्त गति होती हैं। यह गति २२ दिनों तक रहती हैं इस गति का फल भी मध्यम ही हैं पर विशेषता यह है कि इस गति के होने पर घी, तेल, पदार्थों का भाव महँगा होता हैं देश के दक्षिण भाग के निवासियों को साधारण कष्ट होता हैं। दक्षिण में अन्न की फसल अच्छी होती हैं। उत्तर में गुड़, चीनी और अन्य मधुर पदार्थों की उत्पत्ति अच्छी होती हैं। कोयला, लोहा, अभ्रक, ताँबा, शीशा भूमि से अधिक निकलता हैं। देश का अर्थिक विकास होता हैं। जिस दिन से बुध उक्त गति में
आरम्भ करता है उसी दिन से लेकर जिस दिन तक यह गति समाप्त होती हैं। उस दिन तक देश में सुभिक्ष रहता हैं। देश के सभी राज्यों में अन्न और वस्त्र की कमी नहीं होती आसाम में बाढ़ आने से फसल नष्ट होती हैं बिहार के वे प्रदेश भी कष्ट उठाते हैं जो नदियों के तटवर्ती हैं उत्तरप्रदेश में सब तरह से शान्ति व्याप्त रहती हैं पूर्वाभाद्रपद उत्तराभाद्रपद ज्येष्ठा, आश्विनी और रेवती नक्षत्र में बुध की गति तीक्ष्ण कहलाती हैं। यह गति अठारह दिन की होती हैं इस गति के होने से वर्षा का अभाव दुष्काल महामारी अग्निप्रकोप और शस्त्रप्रकोप होता हैं मूल पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रमें बुध के विचरण करने से बुध की योगान्तिका गति कहलाती हैं। यह गति ९ दिन तक रहती हैं इस गति का फल अत्यन्त अनिष्टकर हैं देश में रोग, शोक, झगड़े आदि के साथ वर्षा का भी अभाव रहता हैं श्रावण
और ज्येष्ठ मास में साधारण वर्षा होती हैं, इसके पश्चात् अन्य महीनों में वर्षा नहीं होती है जब तक बुध इस गति में रहता है। तब तक अधिक लोगों की मृत्यु होती हैं आकस्मिक दुर्घटनाएँ अधिक घटित होती हैं। श्रवण, चित्रा, धनिष्ठा
और शतभिषा नक्षत्रमें शुक्र के रहने से उसकी घोर गति कहलाती हैं, यह गति १५ दिन तक रहती हैं। जब बुध इस गति में गमन करता है, उस समय देश में अत्याचार, अनीति, चोरी आदि का व्यापकरूप से प्रचार होता हैं, उत्तरप्रदेश, पंजाब, बंगाल और दिल्ली राज्य के लिये यह गति अत्यधिक अनिष्ट करने वाली हैं।