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भद्रबाहु संहिता ।
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गुरोः शुक्रस्य भौमस्य वीथीं विन्द्याद् यथा बुधः।
दीप्तोते रूक्षः सङ्ग्रामं तदा घोरं निवेदयेत्॥१४॥ जब (बुधः) बुध (गुरोः) गुरु (शुक्रस्य) शुक्र (भौमस्य) मंगल की (वीथीं) वीथि को (यथा विन्द्याद्) जैसे जानो (दीप्तोऽति रूक्षः) अत्यन्त रूक्ष दीप्त होता है (तदा) तब (घोरं सङ्ग्राम निवेदयेत) महान संग्राम होता है, ऐसा निवेदन किया
भावार्थ-जब बुध गुरु, शुक्र, मंगल की वीथि को जानो, अत्यन्त रूक्ष दीप्त हो तो महान् संग्राम होता है, ऐसा जानना चाहिये॥१४ ।।
भार्गवस्योत्तरां वीर्थी चन्द्र शृङ्गं च दक्षिणम्। बुधो यदा निहन्यात्तानु भयोर्दक्षिणापथे॥१५॥ राज्ञां चक्रधराणां च सेनानां शस्त्रजीविनाम्।
पौर जनपदानां च क्रिया काचिन्न सिध्यति॥१६॥ (भार्गवस्योत्तरां वीथीं) यदि शुक्र उत्तर पथ में हो (चन्द्र शृगं च दक्षिणम्) और चन्द्र शृंग दक्षिण में हो (यदा) जब (तानुभयोर्दक्षिणपथे) उभय को दक्षिण पथ में (बुधो) बुध (निहन्यात्) घातित करे तो (राज्ञांचक्रधराणां च) राजा और चक्रवर्ति (सेनानां शस्त्र जीविनाम्) सेना और शस्त्र उपजीविका करने वाले (पौर जनपदानां च) नगर के लोगों की (काचिनक्रिया सिध्यति) कोई भी क्रिया सिद्ध नहीं होती है।
भावार्थ-यदि शुक्र उत्तरापथ में हो चन्द्र शृंग दक्षिण पक्ष में हो, बुध दोनों ही घात करे तो राजा चक्रवर्ती सेना, शस्त्र से आजीविका करने वाले और नगर के लोगों की कोई भी क्रिया सिद्ध नहीं होती है।। १५-१६॥
शुक्रस्य दक्षिणां वीर्थी चन्द्र श्रृंग मधोत्तरम्।
भिन्द्याल्लिखेत् तदा सौम्यस्ततो राज्याग्निजं भयम् ।। १७ ॥ (शुक्रस्य दक्षिणां वीथीं) शुक्र दक्षिण पथ में होने पर (चंद्र शृंग मधोत्तरम्) चन्द्र शृंग नीचे की ओर उत्तर में हो (तदा) तब (भिन्द्याल्लिखेत् सौम्य:) बुध उनका घात करे तो (ततो राज्याग्निजं भयम्) उस राज्य में अग्निभय होगा।