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भद्रबाहु संहिता |
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भावार्थ-ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा , नक्षत्रोंमें गुरु गमन करे तो सुख सम्पत्ति जघन्य प्राप्त होती है, कृत्तिकारोहिणी मूर्ति और आश्लेषा यह तीनों गुरु का हृदय है पूर्वाषाढ़ा अभिजित उत्तराषाढ़ा पुष्य और मघा गुरु की नाभि है इन नक्षत्रों में इनसे विपरीत फल का निरूपण करे॥२२-२३॥
द्विनक्षत्रस्य चारस्य यत् पूर्व परिकीर्तितम्।
एवमेवं तु जानीयात् षड् भयानि समादिशेत्॥२४॥ (यत्) जो (द्विनक्षत्रस्य चारस्य) दो-दो नक्षत्रों का चार (पूर्व परिकीर्तितम्) पूर्व में कहा गया है (एव मेवं तु जानीयाद) उन्हीं के अनुसार इभनि समादिशेत) छह प्रकार के भयों को कहना चाहिये।
भावार्थ-जो दो-दो नक्षत्रों का संचार पूर्व में कहा गया है, उन्हीं के अनुसार छह प्रकार के भयों का निरूपण करना चाहिये ।। २४ ।।
इमानि यानि बीजानि विशेषेण विचक्षणः।
व्याधयो मूर्तिघातेन हृद्रोगो हृदये महत्।। २५॥ (विचक्षणः विशेषेण) बुद्धिमानों को विशेष रीति से (इमानि यानि बीजानि मूर्ति घातेन) गुरु के द्वारा कृत्तिका और रोहिणी का घात हो तो (व्याधयो) व्याधियाँ उत्पन्न होगी ऐसा जानो (हृद्रोगो हृदये महत्) और हृदय नक्षत्र का घात हो तो हृदय रोग होगा ऐसा जानना चाहिये।
भावार्थ- यदि गुरु के द्वारा कृत्तिका और रोहिणी नक्षत्र का घात करता है, तो बुद्धिमानो को ऐसा जानना चाहिये कि नाना प्रकार की व्याधियाँ उत्पन्न होगी हृदय नक्षत्र के घात होने पर हृदय रोग उत्पन्न होंगे।। २५॥
पुष्ये हते हतं पुष्पं फलानि कुसुमानि च। आग्नेया मूषकाः सर्पा दाघश्च शलभाः शुकाः॥२६॥ ईतयश्च महाधान्ये जाते च बहुधा स्मृताः।
स्वचक्रमीतयश्चैव पर चक्रं निरम्बु च॥२७॥ (पुष्ये हते) पुष्य नक्षत्र का घात होने पर (पुष्पं) पुष्प (फलानि) फल, (कुसुमानि