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भद्रबाह संहिता
साढ़े तीन नक्षत्र (चाथवाऽष्टाध) अथवा चार नक्षत्र (षडध) तीन नक्षत्र (पञ्चाध) ढाई नक्षत्र (चाथवाऽध) व आधा नक्षत्र पर (निष्प्रभोदितः) निष्प्रभ उदित हो तो (सङ्ग्रामारौरवास्तत्र) वहाँ पर भयंकर युद्ध होता है (निर्जलाश्चबलाहकाः) खाली बादल होते हैं उसमें पानी नहीं होता (देख इन्थी पृषतीसवी सदी मनी स्थियों से भर जाती है (भ्रान्त्याक्षुस्नेह वारिभिः) कुवायु चलती है।
भावार्थ-जब गुरु संवत्सर में विचरण कर रहा हो,साढ़े तीन नक्षत्र, चार नक्षत्र, तीन नक्षत्र, ढाई नक्षत्र व आधा नक्षत्र पर अगर प्रभा रहित उदित होता हो तो वहाँ पर भयंकर युद्ध होता है, पानी रहित बादलों का आवागमन रहता है, सारी पृथ्वी अस्थियों (हड्डीयों) से भर जाती है क्षुधारोग होता है, कुवायु चलती है याने भयंकर तूफान चलते रहते हैं।। १६-१७॥
पुष्यो यदि द्विनक्षत्रे सप्रभश्चरते समः। षड् भयानि तदा हत्वा विपरीतं सुखं सृजेत् ।। १८॥ नृपाश्च विषमच्छायाश्चतुर्ष वर्तते हितम्।
सुखं प्रजाः प्रमोदन्ते स्वर्गवत् साधु वत्सलाः॥१९॥ (पुष्यो यदि द्विनक्षत्रे) जब वृहस्पति पुष्यादि दो नक्षत्रों में (सप्रभश्चरते सम:) समरूप से गमन करता है तो (तदा) तब (षड् भयानि) छह प्रकार के भयों को (हत्वा) नाशकर (विपरीतं सुखं सृजेत्) विपरीत सुखी सृजना करता है। (नृपाश्चविषमच्छाया:) राजा भी आपसमें प्रेमभाव रखते है (चतुषु वर्तते हितम्) चारों वर्गों को लोग चारों पुरुषार्थों की सिद्धि करते हैं (सुखं प्रजा: प्रमोदन्ते) प्रजा सुखकर आनन्द लेती है (स्वर्गवत्साधु वत्सला:) स्वर्ग के समान लोग साधु वत्सल हो जाते हैं।
भावार्थ-जब गुरु पुष्यादि दो नक्षत्रों पर गमन करता है, तो समझो छह प्रकार के भयों का नाश कर लोग सुख का सृजन करते हैं राजा भी आनन्दपूर्वक रहते हैं चारों वर्गों के लोग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों पुरुषार्थों की सिद्धि में लगे रहते हैं, प्रजा सुख से आनन्दित होती है। सभी लोग साधु के प्रेमी हो जाते हैं॥१८-१९॥