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महिता |
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सुख सम्पत्ति और धन-धान्यकी वृद्धि करता है। मध्यमवीथि में रहनेसे शुक्र मध्यम फल देता है और जघन्य या दक्षिण वीथि में विद्यमान शुक्र कष्टप्रद होता है आर्द्रा नक्षत्र आरम्भ करके मृगशिर तक जो नौ वीथियाँ हैं, उन में शुक्र का उदय या अस्त होनेसे यथाक्रमसे अत्युत्तम, उत्तम, ऊन, सम, मध्यम, न्यून, अधम, कष्ट और कष्टतम फल उत्पन्न होता है। भरणी नक्षत्रसे लेकर चार नक्षत्रों में जो मण्डल-वीथि हो, उसकी प्रथम वीथि में शुक्र का अस्त या उदय होनेसे सुर्भिक्ष होता है, किन्तु अंग, बंग, कलिंग और बाह्रीक देश में भय होता है। आसे लेकर चार नक्षत्रों—आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और आश्लेषा इन चार नक्षत्रोंके मण्डल में शुक्र का उदय या अस्त हो तो अधिक जलकी वर्षा होती है, धन-धान्य सम्पत्ति वृद्धिगत होती है। प्रत्येक प्रदेश में शान्ति रहती है, जनता में सौहार्द्र और प्रेमका प्रचार होता है। यह द्वितीय मण्डल उत्तम माना गया है। अर्थात् शक्र का भरणीसे मृगशिरा नक्षत्रतक प्रथम मण्डल, आर्द्रा आश्लेषा तक द्वितीय मण्डल और मघा चित्रा नक्षत्र तक तृतीयमण्डल होता है। तृतीय मण्डल में शुक्र का उदय और अस्त हो तो वृक्षोंका विनाश, शबर-शूद्र , पुण्ड्रल, द्रविड, शूद्र, वनवासी, शूलिकका विनाश तथा इनको अपार कष्ट होता है। शुक्र का चौथा मण्डल स्वाति, विशाखा और अनुराधा इन नक्षत्रों में होता है। इस चतुर्थ मण्डल में शुक्रके गमन करनेसे ब्राह्मणादि वर्गोको विपुल धन लाभ, यशलाभ और धन-जनकी प्राप्ति होती है। चौथे मण्डल में शुक्र का अस्त होना या उदय होना सभी प्राणियोंके लिए सुखदायक है। यदि चौथे मण्डल में किसी क्रूर ग्रह द्वारा आक्रान्त हो तो इक्ष्वाकुवंशी, आवन्तिके नागरिक, शूरसेन देशके वासी लोगोंको अपार कष्ट होता है। यदि इस मण्डल में ग्रहोंका युद्ध हो शुक्र क्रूर ग्रहों द्वारा परास्त हो जाय तो विश्व में भय और आतङ्क व्याप्त हो जाता है। अनेक प्रकारकी महामारियाँ जनता में क्षोभ असन्तोष एवं अनेक प्रकारके संघर्ष होते हैं। ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा और श्रावण इन पाँच नक्षत्रका पाँचवाँ मण्डल होता है। इस पंचम मण्डल में शुक्रके गमन करनेसे क्षुधा, चोर, रोग आदिकी बाधाएँ होती हैं। यदि क्रूर ग्रहों द्वारा पंचम मण्डल आक्रान्त हो तो काश्मीर, अश्मक, मत्स्य, चारुदेवी और अवन्तिदेशवाले व्यक्तियोंके साथ आभीर, जाति, द्रविड़,