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भद्रबाहु संहिता |
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भावार्थ-यदि शुक्र मंजिष्ठ वर्ण का हो तो वायु रोग, अक्षिरोग होता है पीला हो तो ज्वर करता है काला या विचित्र वर्ण का हो तो लोक क्षय करेगा ऐसा कहना चाहिये।। १७४।।
नभस्तृतीय भागं च आरुहेत् त्वरितो यदा।
नक्षत्राणि च चत्वारि प्रवासमारुहश्चरेत् ॥१७५॥ (यदा) जब (शुक्र त्वारितो) शुक्र शीघ्र ही (नभस्तृतीय भागं च आरुहेत) आकाश के तीसरे भाग को आरोहण करता है तब (चत्वारि) चार (नक्षत्राणि) नक्षत्रों में (प्रवासमारुहश्चरे) प्रवास अत होता है :
भावार्थ-जब शुक्र शीघ्र ही आकाश के तीसरे भाग पर आरोहण करता है तब चार नक्षत्रों का प्रवास अस्त होता है।। १७५॥
एकोनविंशक्षाणि मासानष्टौ च भार्गवः।
चत्वारि पृष्ठतश्चारं प्रवासं कुरुते ततः॥ १७६ ।। जब (भार्गव:) शुक्र (मासानष्टौ) आठ महीनों में (एकोनविंशक्षाणि) उन्नीस नक्षत्रों का भोग करता है (तत:) उस समय (पृष्ठतश्चारं) पीछे के (चत्वारि) चार नक्षत्रों में (प्रवासं कुरुते) प्रवास करता है।
भावार्थ-जब शुक्र आठ महीनों में उन्नीस नक्षत्रों का भोग करता है उस समय पीछे के चार नक्षत्रों में प्रवास करता है॥१७६ ॥
द्वादशैकोनविंशद्वा दशाहं चैव भार्गवः ।
एकैकस्मिश्च नक्षत्रे चरमाणोऽवतिष्ठति॥१७७॥ (भार्गव:) शुक्र (एकैकस्मिश्च नक्षत्रे) एक नक्षत्र पर (द्वादशैकोनविंशद्वा दशाह) बारह दिन, दस दिन और उन्नीस दिन तक (वरमाणोऽवतिष्ठति) विचरण करता
भावार्थ-शुक्र एक नक्षत्र पर बारह दिन, दस दिन और उन्नीस दिन तक विचरण करता है॥१७७॥