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भद्रबाहु संहिता |
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का नाश करता है (अग्नि कमाणि वामस्थो) वाम भाग में हो तो अग्नि कार्यों की (सर्वाणि हन्ति) सब प्रकार से नाश करता है।
भावार्थ-यदि उपर्युक्त शुक्र दक्षिण में दिखे मृगों का नाश, पश्चिमा में दिखे तो पक्षियों का नाश और वाम भाग में दिखे तो सब अग्नि कार्यों का नाश करता है। १२५॥
मध्येन् प्रज्वलन् गच्छन् विशाखामश्वजे नृपम्।
उत्तरोऽवन्तिजान् हन्ति स्त्री राज्यस्थांश्च दक्षिणः ।।१२६ ॥ ___ यदि शुक्र (प्रज्वलन) प्रज्वलित हो तो हुआ (विशाखामश्वजे) विशाखा नक्षत्र और अश्विनी नक्षत्र के (मध्येन) मध्य में (गच्छन्) जाता हुआ दिखाई पड़े और वह भी (उत्तरो) उत्तर दिशा में हो तो (अवन्तिजान् नृपम् हन्ति) अवन्ती देश के राजा का नाश करता है (दक्षिण:) यदि वही दक्षिण में हो तो (स्त्रीराजस्थांश्च) स्त्रीराज्य की प्रजा का नाश करेगा।
__भावार्थ-यदि शुक्र विशाखा और अश्विनी नक्षत्र के मध्य में होकर प्रज्वलित होता हुआ उत्तर से गमन करे तो समझो अवन्ति देश के राजा का नाश होगा और दक्षिण से गमन करे तो समझो स्त्रीराज्य की प्रजा का नाश होगा।। १२६ ॥
अनुराधास्थितो शुक्रो यायिनः प्रस्थितान् वधेत् ।
मदते च मिथो भेदं दक्षिणे न तु वामगः॥१२७॥ (अनुराधास्थितोशुक्रो) अनुराधा नक्षत्र पर शुक्र आरूढ दिखे तो (यायिनः प्रस्थितान् वधेत्) आक्रमण करने के लिये प्रस्थान करने वाले राजा का वध होगा ऐसा सूचित करता है (मर्दते च) और मर्दित करता हुआ दिखे तो (मिथो भेद) परस्पर भेद होता है (दक्षिणेन तु वामगः) यह दक्षिण होने का फल है किन्तु वाम भाग का नहीं है।
भावार्थ-यदि शुक्र अनुराधा नक्षत्र पर आरूढ दिखे तो प्रस्थान करने वाले आक्रमणकारी राजा की मृत्यु का सूचक है अगर शुक्र मर्दित करता हुआ दिखे तो परस्पर भेद हो जाता है यह फल दक्षिण की तरफ शुक्र के रहने का है न की वाम भाग का॥१२७॥