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भद्रबाहु संहिता ।
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भाग (भिनात्ति) भेदन करता है तो (तदा) तब (आढकेनधान्यं) आढ़क प्रमाण धान्योत्पति होगी, (प्रियं विन्द्यादसंशयम्) है प्रिय ऐसा जानो इसमें सन्देह मत करो।
भावार्थ-यदि शुक्र मघा नक्षत्र का दक्षिण की तरफ से घात करता है, तो आढ़क प्रमाण धान्यों की उत्पत्ति होगी, इसमें हे बन्धु ! कोई सन्देह मत समझो।। ११३।।
विलम्बेन यदा तिष्ठेत् मध्येमित्त्वा यदा मघाम्।
आढकेन हि धान्यस्य प्रियो भवति ग्राहकः॥११४॥ (यदा) जब शुक्र (मघाम्) मघा नक्षत्र को (विलम्बेन) देर तक (भित्वा) भेदन करता हुआ (मध्येतिष्ठेत्) मध्यमे ठहरे तो (आढकेनहि धान्यस्य) आढ़क प्रमाण धान्य होगा, (प्रियो भवति ग्राहक:) ग्राहक को प्रिय होगा।
भावार्थ-जब शुक्र मघा नक्षत्र देर तक घात करता हआ मध्यम में ठहरे तो आढ़क प्रमाण तो धान्य होता है और महँगा होता है॥११४॥
मघानामुत्तरं पाव भिनत्ति यदि भार्गवः।
कोष्ठागाराणि पीड्यन्ते तदा धान्यमुपहिंसन्ति ॥११५॥ (यदि भार्गव:) यदि शुक्र (मघानामुत्तरं पाव भिनति) मघा नक्षत्र के उत्तर भाग का भेदन करता है तो (तदा) तब (कोष्ठगाराणि पीड्यन्ते) खंजाची लोग पीड़ित होते हैं और (धान्यमुपहिंसन्ति) धान्यों की उत्पत्ति का घात होता है।
भावार्थ-यदि शुक्र मघा नक्षत्र के उत्तरीय भाग का भेदन करे तो खंजाची लोगों को पीड़ा होती है धान्यों का घात होता है।। ११४॥
प्राज्ञा महान्तः पीड्यन्ते ताम्रवर्णों यदा भृगुः।
प्रदक्षिणे विलम्बश्च महदुत्पादयेज्जलम्॥११६॥ (यदा) जब (शुक्र) शुक्र (ताम्रवर्णो) ताम्रवर्ण का होता है तो (प्रज्ञा महान्तः पीड्यन्ते) बुद्धिमान विद्वान पीड़ा को प्राप्त होती हैं (प्रदक्षिणे विलम्बश्च) और प्रदक्षिणा में शुक्र देर करे तो (महदुत्पादयेज्जलम्) महान् वर्षा होती है।
भावार्थ-जब शुक्र ताम्रवर्ण का हो तो बुद्धिमान विद्वानों को पीड़ा होती है यदि शुक्र प्रदक्षिणा करने में देर करे तो बहुत वर्षा होती हैं।। ११६ ।।