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पञ्चदशोऽध्यायः
ऋषि मुनि, अवन्तिनिवासी और उससे विपरीत दिशा में रहने वाले गोमांस भक्षी शदिवासी और पारसी आदि भी पीड़ित होते हैं और महान् भय, रोग आदि से पीड़ित होते हैं । २६-२७॥
चतुर्थेमण्डले
शुक्रो
कुर्यादस्तमनोदयम् । तदा सस्यानि जायन्ते महामेघाः सुभिक्षदाः ॥ २८ ॥ (चतुर्थेमण्डले शुक्रो ) चतुर्थ मण्डल का शुक्र (कुर्यादस्तमनोदयम्) यदि अस्त और उदय हो तो ( तदा) तब ( महामेघाः ) महान वर्षा होता है (सुभिक्षदा : ) सुभिक्ष करने वाला होता है ( सस्यानि जायन्ते ) धान्यो की उत्पत्ति अच्छी कराता हैं।
भावार्थ-चतुर्थ मण्डल का शुक्र यदि उदय और अस्त हो तो समझो धान्य की उत्पत्ति अच्छी होगी, सुभिक्ष होगा, वर्षा भी महान् होगी ॥ २८ ॥
प्रजानां विद्यादुत्तमं
( पुण्यशीलो जनो राजा ) राजा भी पुण्यशाली होगा, (प्रजानां मधुरोहितः) प्रजा और पुरोहित धर्मात्मा होंगे, (बहुधान्यां महीं) पृथ्वी पर बहुत धान्य उत्पन्न होंगे, (उत्तमदेवर्षणम् विद्याद्) उस वर्ष वर्षा भी उत्तम जानो ।
पुण्यशीलो जनो राजा बहुधान्यां महीं
मधुरोहितः । देववर्षणम् ।। २९ ।।
भावार्थ --- राजा पुण्यशाली होगा, प्रजा और पुरोहित धर्मात्मा होंगे, पृथ्वी पर बहुत धान्य उत्पन्न होंगे, वर्षा भी उत्तम होगी ॥ २९ ॥
अन्तवश्चादवन्तश्च
शूलका : बाह्यो वृद्धोऽर्थवन्तश्च पीडयन्ते
कास्यपास्तथा ।
सर्षपास्तथा ॥ ३० ॥
(अन्तवश्चादवन्तश्च ) अन्तद्या अवन्ति (शूलका) शूलका, ( कास्यपास्तथा ) तथा कास्य, (बाह्योवृद्धोऽर्थ वन्तश्च ) और भी बाहर से आने वाली वृद्धो व सभी ( सर्षपास्तथा ) रोग होंगे व सर्पों को भी रोग होगा ।
भावार्थ - उपर्युक्त शुक्र हो तो अन्नधारोग, अवन्ति रोग, शूल रोग, कास्य रोग होंगे, वृद्धों को पीड़ा होगी, सर्प को भी पीड़ा होगी ये रोग फैल जायगा ॥ ३० ॥