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करवाकर आचार्य श्री के कर कमलों द्वारा दिनांक 14-7-85 को विशाल जनसमुदाय के बीच विमोचन करवाया।
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्यम् एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। श्री सम्मेदशिखर जी के महत्त्व पर प्रकाश डालने वाले इस प्रकार के ग्रन्थ का प्रकाशन आज तक नहीं हुआ है। इस ग्रन्थ में 24 तीर्थकरों के चित्र, प्रत्येक कूट का चित्र अर्घ व उसका फल प्रकाशित किया गया है। संसार में सम्मेदशिखर जी सिद्धक्षेत्र जैसा कोई नहीं है। क्योंकि यह तीर्थराज अनादिकाल का है और इस सिद्धक्षेत्र से हमारे 24 तीर्थकरों में से 20 तीर्थंकर मोक्ष पधारे और उनके साथ-साथ असंख्यात मुनिराज मोक्ष पधारे हैं। इसलिये इस क्षेत्र का कण-कण पूज्यनीय व वंदनीय है। इस क्षेत्र की वंदना करने से मनुष्य के जन्म-जन्म के पापों का क्षय हो जाता है और उसके लिए मोक्ष मार्ग आसान हो जाता है तथा उसे नरक व पशुगति में जन्म नहीं लेना पड़ता और नह 40वें भव में निश्चय ही मोक्ष की प्राप्ति करता है। कहा भी है
भाव सहित वंदे जो कोई।
ताहि नरक पशुगति नहीं होई॥ इस प्रकार इस ग्रन्थ के प्रकाशित होने से अनेक भव्यात्माओं ने इस ग्रन्थ को पढ़कर सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र की यात्रा कर धर्म लाभ प्राप्त किया है और कर रहे हैं। फोटो प्रकाशन एवं निःशुल्क वितरण
माह फरवरी 87 में बोरीवली बम्बई में आयोजित मानस्तम्भ पंचकल्याणक महोत्सव के शुभावसर पर (जन्म-कल्याणक महोत्सव) दिनांक 5-2-87 को परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज व श्री 105 गणिनी आर्यिका विजयमती माताजी के फोटो प्रकाशित कर इसका विमोचन न्यूयार्क निवासी धर्म स्नेही गुरुभक्त श्री महेन्द्रकुमार जी पाण्ड्या व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती आशादेवीजी पाण्ड्या के कर कमलों द्वारा करवाया। दोनों फोटो बहुत ही सुन्दर व मनमोहक हैं। विशिष्ट गुरुभक्तों को निःशुल्क वितरण की गई है। इसके साथ-साथ जिन मन्दिरों व क्षेत्रों पर समिति द्वारा फ्रेम में जड़वाकर फोटो लगवाये गये हैं। रात्रि भोजन त्याग कथा
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परम पूज्य श्री 108 आचार्य रत्न निमित्तज्ञान शिरोमणि विमलसागर जी महाराज विशाल
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