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चतुर्दशोऽध्याय:
है। घर, चैत्यालय और द्वारपर अकारण ही पक्षियोंका झुण्ड गिरे तो उस घर या चैत्यालयका विनाश होता है। यदि कुत्ता हड्डी लेकर घरमें प्रवेश करे तो रोग उत्पन्न होनेकी सूचना देता है। पशुओंकी आवाज मनुष्यों के समान मालूम पड़ती हो तथा वे पशु मनुष्यों के समान आचरण भी करें तो उस स्थान पर घोर संकट उपस्थित होता है। रातमें पश्चिम दिशाकी ओर से कुत्ता शब्द करते हों और उनके उत्तरमें शृगाल शब्द करे अर्थात् पहले कुत्ता बोले, पश्चात् शृगाल अनन्तर पुन: कुत्ता, पश्चात् शृगाल इस प्रकार शब्द करें तो उस नगरका विनाश छ: महीनेके बाद होने लगता है और तीन वर्षों तक उस नगरपर आपत्ति आती रहती है। भूकम्प हुए बिना पृथ्वी फट जाय, बिना अग्निके धुंआ दिखलायी पड़े और बालकगण मार-पीटका खेल-खेलते हुए कहें—मार डालो, पीटो, इसका विनाश कर दो तो उस प्रदेशमें भूकम्प होनेकी सूचना समझनी चाहिए। बिना बनाये किसी व्यक्तिके घरकी दीवालों पर गेरूके लाल चिह्न या कोयलेसे काले चित्र बन जायें तो उस घरका पाँच महीनेके बाद विनाश होता है। जिस घरमें अधिक मकड़ियाँ जाला बनाती हैं उस घर में कलह होती है। गाँव या नगरके बाहर दिनमें शृगाल और उल्लू शब्द करें तो उस गाँवके विनाशकी सूचना समझनी चाहिए। वर्षाकालमें पृथ्वीका काँपना, भूकम्प होना, बादलोंकी आकृतिका बदल जाना, पर्वत और घरों का चलायमान होना, भयंकर शब्दोंका चारों दिशाओंसे सुनायी पड़ना, सूखे हुए वृक्षोंमें अंकुरका निकल आना, इन्द्रधनुषका काले रूपमें दिखलायी पड़ना एवं श्यामवर्णकी विद्युतका गिरना भय, मृत्यु और अनावृष्टिका सूचक है। जब वर्षा ऋतुमें अधिक वर्षा होनेपर भी पृथ्वी सूखी दिखलायी पड़े, तो उस वर्ष दुर्भिक्ष की स्थिति समझनी चाहिए ग्रीष्म ऋतु में बादल दिखलाई पड़ें बिजली कड़के और चारों ओर वर्षाऋतुकी बहार दिखलायी पड़े तो भय तथा महामारी होती हैं। वर्षाऋतुमें तेज हवा चले और त्रिकोण और चौकोर ओले गिरे तो उस वर्ष अकालकी आशंका समझनी चाहिए। यदि गाय, बकरी, घोड़ी, हथिनी और स्त्रीके विपरीत गर्भकी स्थिति हो तथा विपरीत सन्तान प्रसव करें तो राजा और प्रजा दोनोंके लिए अत्यन्त कष्ट होता है। ऋतुओंमें अस्वाभाविक विकार दिखलायी पड़े तो जगत् में पीड़ा, भय, संघर्ष आदि होते हैं। यदि आकाशमें