________________
भद्रबाहु संहिता
४०६
आकाशमें असमय इन्द्रधनुष दिखलायी पड़े तो प्रजाको कष्ट, वर्षाभाव और धन हानि होती है। इन्द्रधनुषका वर्षा ऋतुमें होना भी शुभ सूचक माना जाता है, अन्य ऋतुमें अशुभ सूचक कहा गया है। आकाशसे रुधिर, मांस, अस्थि और चर्बीकी वर्षा होनेसे संग्राम, जनताको भय, महामारी एवं प्रशासकों में मतभेद होता है । धान्य, सुवर्ण, वल्कल, पुष्प और फलकी वर्षा हो तो उस नगरका विनाश होता है, जिसमें यह घटना घटती है। जिस नगरमें कोयले और धूल की वर्षा होती है, उस नगरका सर्वनाश होता है। बिना बादलके आकाशसे ओलोंका गिरना, बिजलीका तड़पना तथा बिना गर्जनके अकस्मात् बिजलीका गिरना उस प्रदेशके लिए भयोत्पादक तथा नाना प्रकारकी हानियाँ होती हैं। किसी भी व्यक्तिको शान्ति नहीं मिल सकती है । निर्मल सूर्यमें छाया दिखलायी न दे अथवा विकृत छाया दिखलायी दे तो देशमें महाभय होता है। जब दिन या रातमें मेघ हीन आकाशमें पूर्व या पश्चिम दिशामें इन्द्रधनुष दिखलाई देता है; तब उस प्रदेशमें घोर दुर्भिक्ष पड़ता है। जब आकाशमें प्रतिध्वनि हो, तूर्य - तुरई की ध्वनि सुनाई दे एवं आकाशमें घण्टा, झालरका शब्द सुनाई पड़े तो दो महीने तक महाध्वनिसे प्रजा पीड़ित रहती है। आकाश में किसी भी प्रकारका अन्य उत्पात दिखलायी पड़े तो जनताको कष्ट, व्याधि, मृत्यु एवं संघर्ष जन्य दुःख उठाना पड़ता है।
दिन में धूल का बरसना, रात्रि के समय मेघविहीन आकाश में नक्षत्रों का नाश या दिन में नक्षत्रों का दर्शन होना संघर्ष, मरण, भय और धन-धान्य का विनाश सूचक है। आकाश बिना बादलों का रंग-बिरंग होना, विकृत आकृति और संस्थानका होना भी अशुभसूचक है। जहाँ छ: महीनों तक लगातार हर महीने उल्का दिखलाई देती रहे, वहाँ मनुष्य का मरण होता है। सफेद और घूंघर रंग की उल्काएँ पुण्यात्मा कहे जाने वाले व्यक्तियों को कष्ट पहुँचाती है। पचरंगी उल्का महामारी और इधर-उधर टकराकर नष्ट होने वाली उल्का देश में उपद्रव उत्पन्न करती है। अन्तरिक्ष निमित्तों का विचार करते समय पूर्वोक्त विद्युत्पात, आदि का विचार अवश्य कर लेना चाहिए।
भूमि पर प्रकृति विपर्यय — उत्पात दिखलायी पड़ें तो अनिष्ट समझना चाहिए। ये उत्पात जिस स्थान में दिखलायी देते हैं, अनिष्ट फल उसी जगह घटित होता