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चतुर्दशोऽध्यायः
अशुभ है वो धार्मिक संघर्ष कराता है। प्रतिमा चलती हुई दिखे व एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाय तो समझो वहाँ पर तीसरे महीने में विपत्ती पड़ती हैं, उस नगर के प्रमुख व्यक्तियों को मरने के समान कष्ट आता है जनता के लोगों में आधि-व्याधि के कष्ट उठाने पड़ते हैं। प्रतिमा के रोने पर राजा, मन्त्री या किसी महान व्यक्ति की मृत्यु होती है आदि।
आकाश में असमय में इन्द्र धनुषादिक दिखने लगे तो प्रजा को कष्ट, अनावृष्टि धन हानि होती है, आकाश से यदि रक्त, मांस, अस्थि चर्बी की वर्षा होने पर संग्राम, जनता को भय, महामारी और राज्य शासकों में मतभेद होता है, दिन में धलि की वर्षा मेघ विहीन आकाश में नक्षत्रों का विनाश दिन में नक्षत्रों का दिखना दिखे तो संघर्ष, मरण, भय और धन-धान्य का विनाश कराता है।
असमय में वृक्षों के फल-फूल आना वृक्ष का हँसना-रोना दूध निकलना आदि दिखे तो उत्पात, धन क्षय, बच्चों के रोग आपस में झगड़ा होने की सूचना देता है। इस प्रकार ये तीनों ही उत्पात प्रजा व राजा का नाश कराता है।
अशुभ उत्पातों को देखते ही धार्मिक जन को शान्ति कर्म अवश्य करना चाहिये। आगे डॉ. नेमिचन्द्र जी क्या कहते हैं वह भी देख लीजिए।
विवेचन स्वभावके विपरीत होना उत्पात है ये उत्पात तीन प्रकार के होते हैं—दिव्य, अन्तरिक्ष और भौम । देव प्रतिमाओं द्वारा जिन उत्पातोंकी सूचना मिलती है, वे दिव्य कहलाते हैं। नक्षत्रोंका विचार, उल्का, निर्घात, पवन, विद्युत्पात, गन्धर्वपुर एवं इन्द्रधनुषादि अन्तरिक्ष उत्पात हैं। इस भूमिपर चल एवं स्थिर पदार्थोंका विपरीतरूपमें दिखलायी पड़ना भौम उत्पात है। आचार्य ऋषिपुत्रने दिव्य उत्पातोंका वर्णन करते हुए बतलाया है कि तीर्थंकर प्रतिमाका छत्र भंग होना, हाथ-पाँव, मस्तक, भामण्डलका भंग होना अशुभ सूचक है। जिस देश या नगरमें प्रतिमाजी स्थिर या चलित भंग हो जायें तो उस देश या नगरमें अशुभ होता है। छत्र भंग होनेसे प्रशासक या अन्य किसी नेताकी मृत्यु, रथ टूटनेसे राजाका मरण तथा जिस नगरमें रथ टूटता है, उस नगरमें छ: महीने के पश्चात् अशुभ फलकी प्राप्ति होती है। शहरमें महामारी, चोरी, डकैती या अन्य अशुभ कार्य छ: महीनोंके भीतर होता है। भामण्डलके भंग होने से तीसरे या पाँचवें महीनमें आपत्ति आती है। उस प्रदेशके शासक या शासन