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| भद्रबाहु संहिता |
रोहिण्यां तु यदा घोषो निर्वातो यदि दृश्यते।
सर्वाः प्रजाः प्रपीड्यन्ते षण्मासात्परतस्तदा ॥१७४॥ (यदा) जब (रोहिण्या) रोहिणी नक्षत्र में (निर्वातो) वायु के न होने पर भी (घोषो दृश्यते) शब्द सुनाई पड़े (तु) तो (षण्मासात्परतस्तदा) छह महीने के अन्दर (सर्वाः प्रजाप्रपीड्यन्ते) सभी प्रजा पीड़ा को प्राप्त होगी।
भावार्थ-जब रोहिणी नक्षत्र में वायु के न होते हुऐ भी शब्द सुनाई पड़े तो छह महीने में सभी प्रजा पीड़ा को प्राप्त होगी। १७४।।
उल्कापातः सनिर्यात: सवातो यदि दृश्यते।
रोहिण्यां पञ्चमासेन कुर्याद् धोरं महद्भयम्॥ १७५ ॥ (रोहिण्या) रोहिणी नक्षत्र में (सनिर्घात:) घर्षण सहित (सवातो यदि दृश्यते) यदि वायु हो (उल्कापात:) उल्कापात हो तो (पञ्चमासेन धोरं महद्भयम्) पाँच महीने में महान् भय उपस्थित होगा।
भावार्थ-जब रोहिणी नक्षत्र में घर्षण पूर्वक उल्कापात और वायु हो तो समझो पाँच महीने में महा भय होगा ।। १७५।।।
एवं नक्षत्रशेषेषु यद्युत्पाताः पृथग्विथाः ।
देवतार्जनलीनं च प्रसाध्यं भिक्षुणा सदा॥१७६॥ (एवं) इसी प्रकार (नक्षत्रशेषेषुपृथाग्विधायद्युत्पाता:) शेष नक्षत्रों में भी उत्पात दिखाई पड़े तो (सदा) सदा (भिक्षुणा) साधुओं को (देवतार्जन लीनं च) देवताओं की पूजा में लीन होकर (प्रसाध्यं) शान्ति करनी चाहिये।
भावार्थ-इस प्रकार अन्य भी नक्षत्रों पर अगर उत्पात दिखे तो साधुओं को धर्मात्माओं को पूजा पाठ करके शान्ति करनी चाहिये क्योंकि उत्पातों की शान्ति भगवान की पूजा आराधना से ही हो सकती है दूसरा कोई उपाय नहीं है॥१७६ ॥
वाहनं महिषीं पुत्रं बलं सेनापति पुरम्।
पुरोहितं नृपं वित्तंध्वन्त्युत्पाता: समुच्छ्रिताः ।। १७७॥ इसी प्रकार (उत्पाता: समुच्छ्रिताः} उत्पात होते है तो (वाहन) सवारी (महिषीं)