________________
भद्रबाहु संहिता
३८४
उसी प्रकार (सौरेण तु हतं मार्ग) शनि के द्वारा प्रताडित मार्ग में (वाचस्पतिः) गुरु (प्रपद्यते) गमन करे तो (तदा) तदा (बहुधा) बहुतेक (सर्वजनानां तु भयं करोति) सब जनो को भय उत्पन्न होता है।
भावार्थ-जब शनि के द्वारा प्रताडित मार्ग में गुरु गमन करे तो समझो सब जीवों को भय उत्पन्न होगा ।। १२०॥
राजदीपोनिपतते भ्रश्यतेऽधः कदाचन ।
षण्मासात् पञ्चमासाद्वा नृपमन्यं निवेदयेत्।। १२१ ॥ (यदि) यदि (राजदीपो) राजा का दीपक (भ्रश्यतेऽध:) भ्रष्ट होकर नीचे (निपतते) गिर पड़े तो (षण्मासात् पाञ्चमासाद्वा) तो छह महीने में व पांच महीने में (अन्यं नृपम् निवेदयेत्) अन्य राजा होगा।
भावार्थ-यदि राजा का दीपक अकस्मात नीचे गिर पड़े तो समझो उस राजा के स्थान पर छह महीने में व पाँच महीने में अन्य राजा आ जाता है।। १२१॥
हसन्ति यत्र निर्जीवाः धावन्ति प्रवदन्ति च।
जातमात्रस्य तु शिशोः सुमहद्भयमादिशेत्॥१२२॥ (यत्र) जहाँ (निर्जीवा:) निर्जीव पदार्थ (हसन्ति) हँसते हो, (धावन्ति) दौड़ते हो (च) और (प्रवदन्ति) बातें करते हो (जातमात्रस्य शिशोः) अथवा उत्पन्न होते हो बच्चे उपर्युक्त करे (तु) तो (सुमहद्भयमादिशेत्) महान भय उत्पन्न होगा ऐसा कहे।
भावार्थ-जहाँ निर्जीव पदार्थ व यथा जात शिशु, हँसता हो, दौड़ता हो, बोलता हो तो महान् भय उत्पन्न होगा ।। १२२॥
निवर्तते यदा छाया परितो वा जलाशयान्।
प्रश्यते च दैत्यानां सुमहद्भयमादिशेत्॥१२३॥ (यदा) जब (जलाशयात्) जलाशय के (परितो) चारों तरफ से (छायानिवर्तते) छाया लौटती हुई (प्रदृश्यते) दिखाई पड़े तो (दैत्यानां सुमहद्भयमादिशेत्) दैत्यों का महान् भय उत्पन्न होता।