________________
बुध
गुरु
शुक्र
शनि
राहु
केतु
भद्रबाहु संहिता
श्याम
पीला
श्यामगौर
कृष्ण
कृष्ण
कृष्ण
श्वेतो ग्रहो यदा पीतो रक्त कृष्णोऽथवा भवेत् । सवर्णविजयं कुर्यात् यथास्वं वर्णशङ्करम् ॥ १०१ ॥
३७८
( यदा) जब (श्वेतोग्रहो ) श्वेत गह ( पीतो) पीला हो, (रक्त) लाल हो (अथवा कृष्णो भवेत् ) काला हो तो ( सवर्ण विजयं कुर्यात्) अपने-अपने वर्णों की विजय कराता है । ( यथास्वं वर्णशङ्करम् ) मिश्रित वर्ण के होने से वर्ण शंकरों को पीड़ा होती है।
भावार्थ- रक्त वर्ण होने पर क्षत्रियों को पीड़ा होती है, पीला होने पर वैश्यो को, काला वर्ण होने पर शुद्रों को मिश्रित वर्ण होने पर वर्ण शंकरों की विजय होती है ॥ १०१ ॥
उत्पाता विविधा ये तु ग्रहाऽघाताश्च दारुणाः । सर्वभूतानां दक्षिणा मृगपक्षिणाम् ॥ १०२ ॥
उत्तराः
( ये ) जो (उत्पाताविविधा) नाना प्रकार के उत्पात है उनमें (ग्रहाऽघाताञ्चदारुणाः ) ग्रहों के घात का उपद्रव बहुत दारुण होता है (उत्तरा सर्वभूतानां ) उत्तर का ग्रह घात सब जीवों को कष्ट देता है (दक्षिण मृग पक्षिणाम् ) और दक्षिण का पशु-प -पक्षियों को कष्ट देता है।
भावार्थ उत्पात नाना प्रकार के होते है, सब उत्पातों में ग्रहों के धात का उत्पात अत्यन्त कष्ट देने वाला होता है, उत्तर का ग्रह घात सब जीवों को कष्ट देता है तो दक्षिण का ग्रह घात पशु और पक्षियों के लिये कष्टदायी होता है ॥ १०२ ॥