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| भद्रबाहु संहिता
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तो (सुव्रता: स्त्रियो हन्तीय) अच्छे व्रत वाली स्त्रियाँ मारी जाती है (आत्मानं वृत्तिनो ये च) और जो व्रत सहित आत्मा है उनको भी पीड़ा होती है (प्रजाम् षण्मासात् पीडयेत) व प्रजा को भी छह महीने में पीड़ा पहुँचती है।
भावार्थ-यदि भद्र काली की मूर्ति में उत्पात दिखाई दे तो समझो सुशील स्त्रियों को व व्रतवती आत्माओं को पीड़ा होगी और छह महीनेमें प्रजा दुःखी होगी॥७५॥
इन्द्राण्याः समुत्पात: कुमार्यः परिपीडयेत्।
त्रिपक्षादक्षिरोगेण कुक्षिकर्ण शिरोज्वरैः ।।७६॥ यदि (इन्द्राण्या: समुत्पात:) इन्द्राणि की मूर्ति में उत्पात दिखे तो (कुमार्यः) कुमारियों को (त्रिपक्षाद) तीन पक्ष में (अक्षिरोगेण कुक्षिकर्ण शिरोज्वरैः) आँख का रोग होगा, पेट का रोग होगा, कान का रोग होगा, सिर का रोग हो (ज्वर में परिपीडयेत्) पीड़ा होगी।
भावार्थ-इन्द्राणी की मूर्ति में उत्पात दिखे तो कुमारियों को पीडा होगी और वह आँख का रोग, पेट का रोग, कान का रोग, सिर का रोग और ज्वर से पीडित होगी॥७६॥
धन्वन्तरे समुत्पातो वैद्यानां स भयङ्करः।
षण्मासिकविकारांश्च रोगजान् जनयेन्नृणाम्।।७७॥ यदि (धन्वन्तरे समुत्पातो) धन्वंतरी की प्रतिमा में उत्पात दिखे तो (वैद्यानां स भयङ्कर:) वह वैद्यों के लिये भयंकर होता है (नृणाम्) मनुष्यों को (षण्मासिक) छह महीने में (विकारांश्च रोगजान् जनयेन्) रोग के विकार उत्पन्न होंगे।
भावार्थ-धन्वंतरी की प्रतिमा में उत्पात से वैद्यो को पीड़ा होगी और मनुष्यों को छह महीनेमें रोग के विकार उत्पन्न होंगे। ७७॥
जामदग्न्ये यदा रामे विकारः कश्चिदीर्यते।
तापसांश्च तपाढयांश्च त्रिपक्षेण जिघांसति ॥७८॥ (यदा) जब (जामदग्न्ये यदा रामे) जमदग्नि परशुराम की मूर्ति में व रामचन्द्र