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र्गदर्शक: अंचिार्य सुवि
प्रकाशकीय
मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि श्री दिगम्बर जैन कुंधु विजय ग्रंथमाला समिति, जयपुर (राजस्थान ) के द्वारा 19 वें पुष्प के रूप में प्रकाशित वृहद 1300 (पृष्ठीय) ग्रंथराज भद्रबाहु संहिता एवं सामुद्रिक शास्त्र करलखन
का विमोचन परम पूज्य भारतगौरव, जिनागम सिद्धान्त महोदधि स्याद्वाद केशरी, श्रमण रत्न, वात्सल्य रत्नाकर वादिभ सूरि गणधराचार्य कुंधु सागरजी महाराज साहब के कर कमलों से प्रतापगढ़ (राजस्थान) में करवाने का परम सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।
"भद्रबाहु संहिता" ग्रंथ में विषयानुरूप श्लोकों के अनुसार विभिन्न रंगों में ऑफसेट प्रिन्टिंग कराकर चित्र प्रकाशित किये गये हैं, जिससे पाठकों को विषय के समझने में बहुत ही आसानी रहेगी चित्रों के साथ इस ग्रंथ का प्रकाशन प्रथम बार ही हुआ है। इससे यह ग्रंथराज बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ सिद्ध होगा ।
इस ग्रंथ की टीका व संकलन करने में मेरे आराध्य गुरुदेव परमपूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुंथु सागरजी महाराज ने बहुत ही कठिन परिश्रम किया है। भव्य जीवों के लाभार्थ आपने जो यह कार्य किया है हम सब उसके लिये कृतज्ञ है और आपके श्री चरणों में कोटिशः बार नमोस्तु अर्पित करते हैं।
भद्रबाहु संहिता निमित्त शास्त्र है जिसके बारे में गणधराचार्य श्री ने इस ग्रंथ की प्रस्तावना लिखकर स्पष्ट लिख दिया है इसलिये इसके बारे में विशेष मुझे लिखने की आवश्यकता नहीं है। इसी ग्रंथराज में सामुद्रिक शास्त्र करलखन विषय से सम्बन्धित खण्ड भी शामिल किया गया है, जिसमें विषय को चित्रों सहित समझाया गया है। इससे सहज ही पाठकगण अपने हाथों की रेखाओं को देखकर ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।
पूर्वाचार्यो द्वारा लिखित तीर्थकरों की वाणी के अनुसार भव्य जीवों को ग्रंथ पढ़ने को