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भद्रबाहु संहिता
योगिनी का वास होता है। सम्मुख और बायें तरफ अशुभ एवं पीछे और दाहिनी ओर योगिनी शुभ होती है। चन्द्रमा का निवास
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चन्द्रश्चरति पूर्वादी क्रमान्त्रिर्दिक्चतुष्टये । मेषादिष्वेष यात्रायां सम्मुखस्त्वतिशोभनः ॥
अर्थात् मेष, सिंह और धनु राशिका चन्द्रमा पूर्वमें; वृष, कन्या और मकर राशिका चन्द्रमा दक्षिण दिशामें; तुला, मिथुन और कुम्भ राशिका चन्द्रमा पश्चिम दिशामें एवं कर्क, वृश्चिक और मीन राशिका चन्द्रमा उत्तर दिशामें वास करता है।
चन्द्रमा का फल
सम्मुख
दक्षिणः सर्वसम्पदे । पश्चिमः कुरुते मृत्युं वामश्चन्दो धनक्षयम् ॥
अर्थ — सम्मुख चन्द्रमा धन लाभ करनेवाला; दक्षिण चन्द्रमा सुख सम्पत्ति देनेवाला; पृष्ठ चन्द्रमा शोक सन्ताप देनेवाला और वाम चन्द्रमा धन नाश करनेवाला होता है। राहु विचार
अष्टासु प्रथमाद्येषु प्रहारार्थेष्वहर्निशम् । पूर्वस्यां वामतो राहुस्तु तुर्यां व्रजेद्धिशम् ॥
अर्थ- -राहु प्रथम अर्धमासमें पूर्व दिशामें, द्वितीय अर्धमासमें वायव्यकोणमें, तृतीय अर्धमासमें दक्षिण दिशामें, चतुर्थ अर्धमासमें ईशानकोणमें, पञ्चम अर्धमासमें पश्चिम दिशामें, षष्ठ अर्धमासमें आग्नेयी दिशामें, सप्तम अर्धमासमें उत्तर दिशा में और अष्टम अर्धमासमें नैर्ऋत्यकोणमें राहुका वास रहता है। यात्रा के लिए राहु आदि का विचार
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जयाय दक्षिणो राहु योगिनी वामतः स्थिता ।
पृष्ठतो द्वयमप्येतच्चन्द्रमाः सम्मुखः पुनः ॥
अर्थ - दिशाशूलका बायीं ओर रहना, राहुका दाहिनी ओर या पीछेकी ओर रहना, योगिनीका बायीं ओर या पीछेकी ओर रहना एवं चन्द्रमा का सम्मुख रहना यात्रा शुभ होता है। द्वादश महीनोंमें पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तरके क्रमसे प्रतिपदासे पूर्णिमा तक क्रमसे सौख्य, क्लेश, भीति, अर्थागम, शून्य, निःस्वत्स, मित्रता, द्रव्य