________________
३२३
त्रयोदशोऽध्यायः
भावार्थ-राजा अपनी सेना को श्मशान भूमि में अथवा हड्डी से युक्त भूमि में अथवा धूल से युक्त भूमि में अथवा जले हुए वन में व सूखे हुए वृक्षों की भूमि में निवास करावे तो समझो राजा का वध होगा ।। १७१ ।।
कोविदारसमाकीणे श्लेष्मान्तकमहाद्रुमे। पिलूकालविविष्टस्य प्राप्नुयाच्च चिराद् वधम्॥१७२॥
यदि सेना को (कोविदारसमाकीर्णे) लाल कचनार के वृक्षों की अथवा (श्लेष्मान्तकमहाद्रुमे) गोंद वाले वृक्षों की व (पिलूकालविविष्टस्य) पीलू के वृक्षों की भूमि पर निवास कराया जाय तो (चिराद्) शीघ्र ही (वधम्) वध को (प्राप्नुयाच्च) प्राप्त हो जारगा।
भावार्थ-यदि सेना को लाल कचनेर की भूमि पर व गोंद वाले वृक्षों की भूमि पर व पीलू के वृक्षों वाली भूमि पर ठहरावे तो समझो शीघ्र ही राजा का वध होगा ।। १७२।। असारवृक्षभूयिष्ठे
पाषागतृणकुत्सिते। देवतायतनाक्रान्ते निविष्टो वधमाप्नुयात्॥१७३॥ (असारवृक्षभूयिष्ठे) अरण्ड के वृक्षों वाली भूमि पर (पाषाण तृण कुत्सिते) पाषाण या तृण से युक्त भूमि पर (देवतायतनाक्रान्ते) अथवा देवता के निवास स्थान पर यदि सेना का (निविष्टो) निवास करावे तो समझो (वधमाप्नुयात्) सेना का वध होगा।
___ भावार्थ-अरण्ड के वृक्षों की व पाषाण से युक्त भूमि पर व तृणों से युक्त भूमि पर व देवताओं के स्थानों पर सेना को निवास करावे तो समझो राजा का वध होगा। १७३ ।।
अमनोज्ञैः फलैः पुष्पैः पापपक्षिसमन्विते।
अधोमार्गे निविष्टश्च युद्धमिच्छति पार्थिवः ॥१७४ ॥ यदि सेना को (अमनोज्ञैः फलैः पुष्पैः) अमनोज्ञ फल पुष्पों के स्थान पर अथवा (पापपक्षि: समन्विते) मांसभक्षी पक्षियों के वृक्षों के नीचे (अधोमार्गे निविष्टश्च)