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त्रयोदशोऽध्याय:
नर्दन्ति द्विपदा यत्र पक्षिणो वा चतुःपदाः।
क्रव्यादास्तु विशेषेण तत्र संग्राममादिशेत् ॥१२५॥ (यत्र जहाँ पर (द्विपना वा चतुःपदा) दो पाँव वाले व चार पाँव वाले (पक्षिणो) पक्षी (विशेषेण) विशेषता से (क्रव्यादास्तु) मांसभक्षी जीव (नन्ति) शब्द करने लगे तो (तत्र) वहाँ (संग्राममादिशेत) संग्राम होने की सूचना समझनी चाहिये।
भावार्थ-दो पाँव वाले अथवा चार पाँव वाले विशेषकर मांसभक्षी पशु-पक्षी प्रयाण के समय में शब्द करे तो समझो वहाँ पर संग्राम अवश्य होगा ।। १२५॥
विलोमसु च वातेषु प्रतीष्ठे वाहनेऽपि च।
शकुनेषु च दीप्तेषु युध्यतां तु पराजयः ।। १२६॥ (विलोमसु च वातेषु) वायु विलोम रूप होकर चले, (च) और (वाहनेऽपि प्रतीष्ठे) वाहनादिक प्रदीप्त दिखे, (शकुनेषु च दीप्तेषु) शकुन दीप्त दिखे (तु) तो (युध्यतां पराजयः) युद्ध में पराजय होगी।
भावार्थ-वायु विलोम रूप चले वाहनादिक प्रदीप्त हो और शकुन दीप्त दिखे तो समझो युद्ध में सेना की पराजय होगी ।। १२६॥
युद्धप्रियेषु हृष्टेषु नर्दत्सु वृषभेषु च।
रक्तेषु चाभ्रजालेषु सन्ध्यायों युद्धमादिशेत्॥१२७ ॥ (युद्धप्रियेषु हृष्टषु) युद्ध में प्रियों के प्रशन्न होने पर (च) और (वृषभेषु) बैलादिकों के (नर्दत्सु) गर्जना करने पर (चाभ्रजालेषु) और बादलों (सन्ध्यायां) सन्ध्याकाल में (रक्तेषु) लाल होने पर (युद्धमादिशेत) युद्ध होगा ऐसी सूचना मिलती
भावार्थ---युद्ध में अगर हमारे प्रिय प्रशन्न हो रहे हो, गाय, बैलादिक गर्जना कर रहे हो, और सांयकाल के बादल लाल वर्ण के दिख रहे हो तो समझो युद्ध होगा ।। १२७॥
अभ्रेषु च विवर्णेषु युद्धोपकरणेषु च। दृश्यमानेषु सन्ध्यायां सद्यः संग्राममादिशेत्॥१२८॥