________________
भद्रबाहु संहिता
३०४
(प्रयायिनाम्) युद्ध प्रयाण को (स्कन्धवारे चक्षुषो व्याधिः) अगर चक्षु रोग उत्पन्न (जायते) हो जाय (वा) अथवा (अनाग्निज्वलनं स्यात्) अकस्मात अग्नि जलने लगे तो (सोऽपि राजा विनश्यति) तो भी राजा नष्ट हो जायगा।
भावार्थ-युद्ध यात्री को अगर नेत्र रोग उत्पन्न हो अथवा अकस्मात अग्नि जलने लगे तो समझो राजा नष्ट हो जायगा | १०९॥
द्विपदश्चतुः पदो वाऽपि स कृन्मुञ्चति विस्वरः।
बहुशो व्याधिता" वा सा सेना विद्रवं व्रजेत् ॥११०॥ यदि सेना के प्रयाण काल में (द्विपदश्चतु: पदो वाऽपि) दो पाँव वाले और चार पाँव पारो (सकृयति विस्तारःमक साथ मिलकर विस्वर करे तो (सेना) सेना (बहुशो व्याधितार्ता) बहुत ही व्याधि ग्रस्त होकर (विद्रवं वज्रेत) उपद्रव को प्राप्त करती है।
भावार्थ सेना प्रयाण काल में अगर मनुष्य और पशु विस्वर शब्द करे तो सेना में बहुत ही रोग उत्पन्न होकर लोग उपद्रव को प्राप्त होंगे। ११०॥
सेनायास्तु प्रयाताया कलहो यदि जायते।
द्विधा त्रिधा वा सा सेना विनश्यति न संशयः॥१११ ॥ (सेनायास्तु प्रयाताया) सेना के प्रयाण समय में (यदि) यदि (कलहो जायते) कलह हो जाता है और वह भी (द्विधा) दो भाग में (वा) और (त्रिधा) तीन भाग में बट जाय तो (सा) वो (सेना) सेना (विनश्यति) नाश हो जाती है (नसंशयः) उसमें कोई सन्देह नहीं हैं।
भावार्थ-सेना के यात्रा समय में यदि सेना के लोग परस्पर लड़ जाय और दो-तीन भाग में बंट जाय तो वो सेना नष्ट हो जायगी इसमें कोई सन्देह नहीं हैं॥१११।।
जायते चक्षुषो व्याधिः स्कन्धावारे प्रयायिणाम्।
अचिरेणैव कालेन साऽग्निना दह्यते चमूः॥११२।। (प्रयायिणाम्) युद्ध यात्री का सेना में (स्कन्धावारे) अकस्मात (चक्षुषो व्याधिः