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मामंदर
भद्रबाहु संहिता एवं सामुद्रिक
शास्त्र करलखन ग्रंथ
के बारे में मेरे विचार -डा0 प्रो. अक्षय कुमार जैन, इन्दौर
ज्योतिष शास्त्र आकाश स्थित दिव्य रश्मियों के पुञ्ज सूर्य चन्द्र ग्रह नक्षत्र और आकाश गंगा के
अनंत तारा मंडलों की प्रभाव शक्ति से परिचय कराता है- यह उतना पुराना और प्राचीन है जितने सूर्य चन्द्र और पृथ्वी जैन ज्योतिष जिन, जिनागम, जिनवाणी, श्रमण परंपरा की तरह पुरातन है। ज्योतिष के 19 प्रवर्तक । सूर्य, 2 पितामह, 3 व्यास, 4 वशिष्ठ, 5 आत्रि, 6 पराशर, 7 कश्यप, 8 नारद, 9 गर्ग, 10, मरीचि, ।। मनु, 12 अंगिरा, 13 लोमेश, 14 पुलिश, 15 च्यवन, 6 यवन, 17 भृगु, 18 शौनक, 19 पुलस्त्य की तरह जैनाचार्य भद्रबाह स्वामी भी इसी कोटि गणना क्रम में आते हैं। यह इतिहास और अनुसंधान का विषय है कि भद्रबाहु महर्षि पाराशर के ही भ्राता थे किंतु उनके द्वारा प्रणीत ग्रंथ उनके दिव्य, मौलिक, प्रामाणिक, ज्योतिष शास्त्र के प्रमाण हैं आदिकाल से । होरा, 2 गणित या सिद्धांत, 3 संहिता, 4 प्रश्न, 5 शकुन इस प्रकार पंचस्कंघात्मक शास्त्र का विवेचन संसार के सभी ज्योतिष विद्वानों ने अपनी-अपनी मातृभाषा और चीनी, यूनानी, अंग्रेजी, उर्दू जर्मन फ्रेंच आदि सभी विदेशी भाषाओं में भी किया है। वेद, वेदांग, उपनिषद् और बौद्ध साहित्य की तरह जैनागम में भी ज्योतिष शास्त्र के अनेकों ग्रंथ उपलब्ध है। सूर्य प्रज्ञसि, चंद्र प्रज्ञसि, विद्यानुवाद पूर्व, में जैन ज्योतिष के बीज विस्तार सभी हैं तथा गणित, सिद्धांत फलित की भी विस्तृत विवेचना है। ऋग्वेद में 'द्वादशांर नहि तज्जराय।" इस सूत्र में चक्र की बारह राशियों का द्योतक कहा है जैन ज्योतिष के विद्वानाचार्य-गर्ग, ऋषि पुत्र और कालकाचार्य ने भी इसी की पुष्टि की है। ज्योतिष्करण्क, गर्ग संहिता, सूर्य-चन्द्र प्रज्ञासि तो विश्व ज्योतिष को जैनों की मौलिक, अभूतपूर्व, अमर देन है ही। "यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे।" का सिद्धांत अनादि से प्रचलित है तदनुसार मानव जीवन के बाह्य व्यक्तित्व के तीन रूप और आंतरिक