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योदशोऽध्यायः
मारुतो दक्षिणो वापि यदा हन्ति परां चमूम्।
प्रस्थितानां प्रमुखतः विन्द्यात् तत्र पराजयम्॥७३॥ (यदा) जब (दक्षिणोमारुतो) दक्षिण की वायु (वापि) वो भी (चमूम् परां हन्ति) सेना का घात करे तो (तत्र) वहाँ (प्रस्थितानां) प्रयाण करने वाले (प्रमुखतः) प्रमुख राजा की (पराजयम् विन्द्यात्) पराजय होती हैं।
भावार्थ-जब दक्षिण दिशा की वायु सेना का घात करती हुई चले तो राजा की पराजय होगी ऐसा जानो॥७३॥
यदा तु तत्परां सेनां समागम्य महाघनाः ।
तस्य विजयमाख्याति भद्रबाहुवचो यथा॥७४॥ (यदा) जब (सेनां) सेना के युद्ध में (तत्परां) तत्पर होने पर (महाघनाः समागम्य) महामेघों का समागम हो जाय तो (तस्य) उसकी (विजयमाख्याति) विजय होगी, ऐसा (भद्रबाहुवचो यथा) भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ-जब सेना के युद्ध क्षेत्र में तत्पर होने पर समझो महामेघों का समागम हो जाय तो उस राजा की विजय होगी, ऐसा भद्रबाहु स्वामी ने कहा है।। ७४ 11
हीनाङ्गा जटिला बद्धा व्याधिता: पापचेतसः।
षण्ढाः पापस्वरा ये च प्रयाणे ते तु निन्दिताः॥७५॥ (प्रयाणे) प्रयाण समय में, (हीनाङ्गा) हीन अङ्ग वाला (जटिला बद्धा) जटिल बेड़ी से युक्त, (व्याधिता:) नाना व्याधियों से युक्त (पापचेतसः) पापचित्त वाला (षण्डाः ) नपुंसक (पापस्वरा) पापरूप वचन बोलने वाला (ये) जो (ते तु) उस समय सामने मिल जावे तो (निन्दिताः) यात्रा निन्दित होती है।
भावार्थ-राजा के प्रयाण समय में हीन अङ्ग वाला बेड़ीयों से जकड़ा व्याधियों से युक्त पापबुधि वाला नपुंसक, पाफ्रूप बोलने वाला न्यायोचित्त वचन बोलने वाला समाने मिल जावे तो समझो उस दिन राजा को नहीं जाना चाहिये अपना प्रयाण रोक देना चाहिये || ७५॥
नग्नं प्रवृजितं दृष्ट्वा मङ्गलं मङ्गलार्थिनः । कुर्यादमङ्गलं यस्तु तस्य सोऽपि न मङ्गलम्॥७६॥