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भद्रबाहु संहिता
किया गया है। स्वर्ण के समान सूर्य का रंग सुखदायी होता है तथा इस प्रकार के सूर्य के दर्शन करने से व्यक्ति को सुख और आनन्द प्राप्त होता है।
तेइसवें अध्याय में में 58 श्लोक हैं। इसमें चन्द्रमा के वर्ण, संस्थान, प्रमाण आदि का प्रतिपादन किया गया है। स्निग्ध, श्वेतवर्णे, विशालाकार और पवित्र चन्द्रमा शुभ समझा जाता है। चन्द्रमा का शृंग — किनारा कुछ उत्तर की ओर उठा हुआ रहे तो दस्युओं का घात होता है। उत्तर शृंगवाला चन्द्रमा अश्मक, कलिंग, मालव, दक्षिण द्वीप आदि के लिए अशुभ तथा दक्षिण श्रृंगोन्नतिवाला चन्द्र यवनदेश, हिमाचल, पांचाल, आदि देशों के लिए अशुभ होता है । चन्द्रमा की विभिन्न आकृति का फलादेश भी इस अध्याय में बतलाया गया है। चन्द्रमा की गति, मार्ग, आकृति, वर्ण, मंडल, वीथि, चार, नक्षत्र आदि के अनुसार चन्द्रमा का विशेष फलादेश भी इस अध्याय में वर्णित है ।
चौबीसवें अध्याय – में 43 श्लोक हैं। इसमें ग्रह युद्ध का वर्णन है । ग्रहयुद्ध के चार भेद हैं—भेद, उल्लेख, अंशुमर्दन और अपसव्य । ग्रहभेद में वर्षा का नाश, सुहृद और कुलीनों में भेद होता है। उल्लेख युद्ध में शस्त्र भय, मन्त्री विरोध और दुर्भिक्ष होता है। अंशुमर्दन युद्ध
राष्ट्रों में आन्तरिक संघर्ष होता है तथा राष्ट्रो में वैमनस्य भी बढ़ता है। इस अध्याय में ग्रहों के नक्षत्रों का कथन तथा ग्रहों के वर्णों के अनुसार उनके फलादेशों का निरूपण किया गया है। ग्रहों का आपस में टकराना धन-जन के लिए अशुभ सूचक होता है ।
पच्चीसवें अध्याय में 50 श्लोक हैं। इसमें ग्रह, नक्षत्रों के दर्शन द्वारा शुभाशुभ फल का कथन किया गया है। इस अध्याय में ग्रहों के पदार्थों का निरूपण किया गया है। ग्रहों के वर्ण और आकृति के अनुसार पदार्थों के तेज, मन्द और समत्व का परिज्ञान किया गया है । यह अध्याय व्यापारियों के लिए अधिक उपयोगी है।
छब्बीसवें अध्याय- में स्वप्न का फलादेश बतलाया है। इस अध्याय में 86 श्लोक हैं। स्वप्न निमित्त का वर्णन विस्तार के साथ किया गया है। धनागम, विवाह, मंगल, कार्यसिद्धि, जय, पराजय, हानि, लाभ आदि विभिन्न फलादेशों की सूचना देने वाले स्वप्नों का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, प्रार्थित, कल्पित और भाविक इन सात प्रकार के स्वप्नों में से केवल भाविक स्वप्नों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है।
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