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भद्रबाहु संहिता
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(नैमित्तः) नैमित्तज्ञ (साधुसम्पन्नों) साधु स्वभाव वाला हो (राज्ञ: कार्यहिताय स:) व राजा का हित करने वाला हो (पार्थिवेनोक्ताः) राजा के अनुसार चलने वाला और कहा करने में (सङ्घाता) संलग्न (समानस्थाप्यकोविदः) और समान भाव स्थापित करने वाला निमित्तज्ञ होता है।
भावार्थ-निमित्तज्ञ के लक्षण बताते हुऐ आचार्य कहते हैं कि निमित्तज्ञ बहुत ही सरल स्वभाव का हो, प्रतिक्षण राजा के कार्य में संलग्न और हित का ही विचार करने वाला हो और समताभाव धारण करने वाला हो इन लक्षणों से युक्त ही निमित्तज्ञ होता है, अगर ये लक्षण ज्योतिषि में नहीं है तो वह निमित्तज्ञ नहीं बने, उसे ज्ञानी बनने का अधिकार नहीं।। १५ ।।
स्कन्धावारनिवेशेषु कुशल: स्थापको मतः।
कायशल्यशलाकासु विषोन्मादज्वरेषु च ।। १६॥ (स्कन्धावारनिवेशेषु) छावनी आदि बनाने में (कुशल:) निपुण राजा को (मत:) माना है और (कायशल्य) शरीर चिकित्सा (शलाकासु) चीरफाड़ करने में निपुण (विषोन्माद) विषहर चिकित्सा, (उन्माद च ज्वरेषु) ज्वरादि को नष्ट करने में समर्थ वैद्य होता है।
भावार्थ-निमित्तज्ञ राजा छावनी आदि बनाने में निपुण होता है। शरीर चिकित्सा, शल्यचिकित्सा में प्रवीण होता है विषहर प्रयोग करने में निपुण होता है, उन्माद नष्ट हर प्रयोग में निपुण ज्वरादिक को नष्ट करने में निपुण होता है, वही राजवैद्य हो सकता है॥१६॥
चिकित्सानिपुणः कार्यः राज्ञा वैद्यस्तु यात्रिकः ।
ज्ञानवानल्प वाग्धीमान् कांक्षामुक्तो यशः प्रियः ॥१७॥ (चिकित्सानिपुणः) जो चिकित्सा शास्त्र निपुण, (राज्ञा कार्यः) राजा का कार्य करने में दक्ष, ऐसा (वैद्यस्तु) वैद्य को ही (यात्रिक:) यात्राकाल में राजा रखे। (ज्ञानवानल्प) ज्ञानवान अल्प भाषण करने वाला (वाम्धीमान्) मितभाषी, बुद्धिमान, (कांक्षामुक्तो) आकांक्षाओं से रहित (यशः प्रियः) यश: प्रिय हो।
भावार्थ-जो चिकित्साशास्त्र निपुण हो राजा के कार्य करने में निपुण हो