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एकादशोऽध्यायः
पड़ते हैं। यदि कुछ रात्रि शेष रहे तब गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो चोर, नृपति, प्रबन्धक एवं पूँजीपतियोंके लिए हानिकारक होता है। रात्रिके अन्तिम पहरमें ब्रह्ममुहूर्त कालमें गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो उस प्रदेशमें धनका अधिक विकास होता है। भूमिके नीचेसे धन प्राप्त होता है। यह गन्धर्वनगर सुभिक्ष कारक है। इसके द्वारा धन-धान्यकी वृद्धि होती है। प्रशासक वर्गका भी अभ्युदय होता है। कला-कौशलकी वृद्धिके लिए भी इस समयका गन्धर्वनगर श्रेष्ठ माना गया है।
___ पंचरंगा गन्धर्वनगर हो तो नागरिकोंमें भय और आतङ्कका सञ्चार करता है, रोगभय भी इसके द्वारा होते हैं। हवा बहुत तेज चलती है, जिससे फसलको भी क्षति पहुँचती है। श्वेत और रक्तवर्णकी वस्तुओंकी महँगाई विशेषरूपसे रहती है। जनतामें अशान्ति और आतङ्क फैलता है। श्वेतवर्णका गन्धर्वनगर हो तो घी, तेल और दूधका नाश होता है। पशुओंकी भी कमी होती है और अनेक प्रकार की व्याधियाँ भी व्याप्त हो जाती हैं। गाय, बैल और घोड़ों की कीमतमें अधिक वृद्धि होती है। तिलहन और तिलका भाव ऊँचा बढ़ता है। विदेशोंसे व्यापारिक सम्बन्ध दृढ़ होता है। काले रंगका गन्धर्वनगर वस्त्रनाश करता है, कपासकी उत्पत्ति कम होती है। तथा वस्त्र बनाने वाली मिलों में भी हड़ताल होती हैं। जिसमें वस्त्र का भाव तेज हो जाता है। कागज तथा कागजके द्वारा निर्मित वस्तुओंके मूल्यमें भी वृद्धि होती है। पुरानी वस्तुओंका भाव भी बढ़ जाता है तथा वस्तुओंकी कमी होनेके कारण बाजार तेज होता जाता है। लालरंजका गन्धर्वनगर अधिक अशुभ होता है, यह जितनी ज्यादा देर तक दिखलाई पड़ता रहता है, उतना ही हानिकारक होता है। इस प्रकारके गन्धर्वनगरका फल मारपीट, झगड़ा, उपद्रव अस्त्र-शस्त्रका प्रहार एवं अन्य प्रकारसे झगड़े-टण्टोंका होना आदि है। सभी प्रकारके रंगोंमें लालरंगका गन्धर्वनगर अशुभ कहा गया है। इसका फल रक्तपात निश्चित है। जिसरंगका गन्धर्वनगर जितने अधिक समय तक रहता है, उसका फल उतना ही अधिक शुभाशुभ समझना चाहिए।
गन्धर्वनगर जिस स्थान या नगरमें दिखलाई देता है, उसका फलादेश उसी स्थान और नगरमें समझना चाहिए। जिस दिशामें दिखलाई दे उस दिशामें भी हानि या लाभ पहुंचता है। इसका फलादेश विश्वजनी नहीं होता, केवल थोड़ोसे प्रदेश में