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एकादशोऽध्यायः
भावार्थ- -यदि गन्धर्व नगर अनेक वर्ण और अनेक संस्थान वाला हो तो ग्राम, नगर, देश सब क्षुभित हो जाते हैं वहाँ पर रक्त मांस का कीचड़ करने वाला युद्ध होता है इनके लक्षण ही ऐसे होते है ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ॥ २५-२६ ॥ रक्तं गन्धर्वनगरं क्षत्रियाणां भयावहम् ।
पीतं वैश्यान् निहल्याशु कृष्णं शूद्रासितं द्विजान् ।। २७ ।।
( रक्तं ) लालरंग का ( गन्धर्वनगरं ) गन्धर्व नगर (क्षत्रियाणां ) क्षत्रियों को (भयावहम्) भय उत्पन्न करता है ( पीतं वैश्यान् ) पीला वैश्यो को ( निहन्त्याशु) नष्ट करता है (कृष्णं शूद्रान् ) काला शूद्रोको व ( सितंद्विजान् ) सफेद ब्राह्मणों को नष्ट करता है।
भावार्थ - लाल रंगका गन्धर्व नगर क्षत्रियों के लिये भय उत्पन्न करने वाला है, पीला गन्धर्व नगर वैश्यों के घातका कारण है काला शुद्रों को नष्ट करता है और सफेद ब्राह्मणों का घात करता है ।। २७ ॥
अरण्यानि तु सर्वाणि
गन्धर्वनगरं
यदा ।
आरण्यं जायते सर्वं तद्राष्ट्र नान संशयः ।। २८ ।।
( यदा) जब ( गन्धर्वनगर) गन्धर्व नगर ( सर्वाणिअरण्यानि ) सब अरण्यमें दिखे (तु) तो ( तदा ) तब ( सर्वं ) सब ( आरण्यं) जंगल के समान ही (तद्राष्ट्र) वह देश ( जायते) हो जाता है ( नात्र संशयः ) इसमें कोई संशय नहीं है ।
भावार्थ — यदि गन्धर्व नगर अरण्य में दिखाई पड़े तो वह देश भी जंगल के समान ही हो जाता है इसमें कोई संशय नहीं है ॥ २८ ॥
विन्द्याद् भयं प्रहरणेषु
अम्बरेषूदकं अग्निजेषुपकरणेषु
यदि गन्धर्व नगर ( अम्बरेषु) आकाश में दिखे तो (उदकं ) वर्षा हो (च) और (प्रहरणेषु) शस्त्रों के बीज दिखे तो ( भयं ) भय होता है (अग्निजेषुपकरणेषु) अग्नि के उपकरणों में दिखे तो (भयमग्नेः ) अग्नि का भय ( विन्द्याद्) जानो ( समादिशेत् ) ऐसा कहा गया है।
च ।
भयमग्नेः समादिशेत् ॥ २९ ॥