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भद्रबाहु संहिता
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यदि (गन्धर्वनगर) गन्धर्व नगर (क्षिप्रं) शीघ्रगतिसे (चाभिदक्षिणम्) दक्षिणदिशा की ओर (जायते) जाते है तो (स्वपक्षागमन) अपने पक्ष का आगमन (चैव) और (जयं) जयको (वृद्धिं) वृद्धि को करते है (जलंवहेत) वर्षा भी अच्छी करता है।
__ भाजार्ण-यदि गन्धर्व नगर दक्षिण दिशा की ओर शीघ्र गतिसे जाते हुए दिखलाई पड़े तो समझो स्वपक्ष की विजय, सिद्धि, जय वृद्धि, बल सामर्थ्य की सिद्धि होती है वर्षा भी अच्छी होती है।। १६॥
यदागन्धर्वनगरं प्रकटं तु दवाग्निवत् ।
दृश्यते पुररोधाय तद् भवेन्नात्र संशयः॥ १७ ।। (यदा) जब (गन्धर्वनगरं) गन्धर्व नगर (प्रकटं) प्रकटरूप (दवाग्निवत्) दवाग्निके समान (दृश्यते) दिखलाई पड़े (तु) तो (तद् तब (पुररोधाय) नगर का अवरोध (भवेत्) होता है (नात्रसंशय) इसमें कोई सन्देह नहीं है।
भावार्थ-जब गन्धर्व नगर प्रकट रूप से दवाग्नि के समान दिखलाई पड़े तो अवश्य ही नगर का अवरोध होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है॥१७ ।।
अपसव्यं विशीर्ष तु गन्धर्व नगरं यदा।
तदा विलुप्यते राष्ट्र बल क्षोभश्च जायते ।। १८॥ (यदा) जब (गन्धर्वनगरं) गन्धर्वनगर (अपसव्यं) दक्षिणमें हो (विशीर्ण) विशीर्णरूप हो (तु) तो (तदा) तब (राष्ट्र) राष्ट्रका (बल) शक्तिका (विलुप्यते) लोप होती हुई (क्षोभश्च) क्षोभरूप (जायते) हो जाती है।
भावार्थ-जब गन्धर्व नगर दक्षिणमें विशीर्ण रूप दिखाई पड़े तो समझो राष्ट्रकी शक्ति का लोप हो जायगा, सब क्षुभित हो जायगें॥१८॥
यदा गन्धर्वनगरं प्रविशेच्चाभिदक्षिणम।
अपूर्वां लभते राजा तदा स्फीतां वसुन्धराम्॥१९।। (यदा) जब (गन्धर्वनगर) गन्धर्व नगर (चाभिदक्षिणम्) दक्षिणकी ओर से (प्रविशेच्) चारों ओर फैले तो (तदा) तब (स्फीतां) शीघ्र ही (अपूर्वां) अपूर्व (राजा) राजा (वसुन्धराम्) पृथ्वी को (लाभते) प्राप्त करता है।