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भद्रबाहु संहिता
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गायों के घात का कारण है (अव्यक्तवर्ण) अगर अव्यक्त वर्ण का है तो (बलक्षोभं) बल का क्षोभ (कुरुते) करता है (न संशयः) इसमें कोई संशय नहीं है।
भावार्थ-यदि गन्धर्व नगर कपिल वर्ण का है तो धान्यो का नाश होगा, मञ्जिष्ठवर्णका है तो हरिणों व गायों के नाश का कारण है, अव्यक्त वर्णवाला है तो राजा के बलका क्षोभ करने वाला है इसमें कोई संशय नहीं है॥९॥
गन्धर्व नगरं स्निग्धं सप्राकारं सतोरणम्।
शान्तादिशि समाश्रित्य राज्ञस्तद्विजयं वदेत् ॥ १०॥ यदि (गन्धर्व नगर) गन्धर्व नगर (स्निग्ध) स्निग्ध है (सप्राकार) प्राकार सहित है (सतोरणम्) तोरण सहित है और (शांत दिशि) दिशाएँ भी शान्त है (समाश्रित्य) तो समझो (तद) वहाँ पर (राज्ञः) राजा की (विजय) विजय होगी (वदेत्) ऐसा कहे।
भावार्थ-यदि गन्धर्व नगर स्निग्ध है प्राकार व तोरणों से सहित है दिशाएँ भी शान्त है तो समझो वहाँ पर राजा की विजय अवश्य होगी।। १०॥
गन्धर्वनगरं व्योम्नि पुरुषं यदि श्यते।
वाताशनिनिपातांस्तु तत् करोति सुदारुणम्॥११॥ (यदि) यदि (व्योम्नि) आकाशमें (पुरुष) कठोर (गन्धर्वनगर) गन्धर्व नगर (दृश्यते) दिखाई पड़े (तत्) तब (वाता) वायु और (शनि) बिजलीके (निपातांस्तु) गिरने से (सुदारुणम्) महान भयंकर भय (करोति) करते है।
भावार्थ-यदि कठोर गन्धर्व नगर आकाश में दिखाई पड़े तो समझो महान भयंकर वायु और बिजली पड़ेगी, जिससे भय उपस्थितत होगा॥११।।
इन्द्रायुध सवर्णं च धूमाग्नि सदृशं च यत् ।
तदाग्नि भयमाख्याति गन्धर्वनगरं नृणाम् ॥१२॥ (यदि) यदि (गन्धर्वनगर) गन्धर्व नगर (इन्द्रयुध सवर्ण) इन्द्र धनुध के रंग का हो (च) और (धूमाग्नि सदृशं) धूम या अग्नि के समान हो (तद्) तब (अग्निभयं) अग्नि का भय (नृणाम्) मनुष्योको (आख्याति) होता है ऐसा कहा गया है।