________________
२९५
दशमोऽध्यायः ।
नक्षत्र पर्यन्त १५ दिन तक रखें, उन्हें तनिक भी अपने स्थान से इधर-उधर न उठावें। रोहिणी नक्षत्र के बीत जाने पर उत्तर दिशावाले घड़ेके जलका निरीक्षण करे। यदि उस घड़ामें पूर्णवार समस्त जल मिले तो श्रावणभर खूब वर्षा होगी। आधा खाली होवे तो आधे महीने वृष्टि और चतुर्थांश जल अवशेष हो तो चौथाई वर्षा एवं जलसे शून्य घड़ा देखा जाय तो श्रावणमें वर्षाका अभाव समझना चाहिए। तात्पर्य यह है कि उत्तर दिशा के घड़े के जल प्रमाण से श्रावण में वर्षा का अनुमान लगाया जा सकता है। जितना कम जल घड़में रहेगा, उतनी ही कम वर्षा होगी। इसी प्रकार पूर्व दिशाके धडेसे भादपद मासकी वर्षा, दक्षिण दिशाके पड़ेसे आश्विन मासकी वर्षा, और पश्चिमके घड़ेके जलसे कार्तिककी वर्षाका अनुमान करना चाहिए | यह एक अनुभूत और सत्य वर्षा परिज्ञान का नियम है।
चित्र
पूर्व-भाद्रपद
उत्तर—श्रावण |
वेदी या चतुष्कोण घर का भाग । दक्षिण-आश्विन
कार्तिक–पश्चिम वर्षाका विचार रोहिणी चक्रके अनुसार भी किया जाता है। 'वर्षप्रबोध' में मेघविजय प्राणिने इस चक्रका उल्लेख निम्न प्रकार किया हैं।
राशिचक्रं लिखित्वादौ मेषसंक्रान्ति भादिकम् । अष्टाविंशतिकं तत्र लिखेनक्षत्रसङ्घले।। सन्धौ द्वयं जलं दद्यादन्यत्रैकैकमेव च । चत्वार: सागरस्तत्र सन्धयश्चासंख्यया ।। शृङ्गाणि तत्र चत्वारि तटान्यष्टौ स्मृतानि च ।