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देशमोऽध्यायः
रहती है। यदि रेवती नक्षत्र लगते ही वर्षा आरम्भ हो जाय तो फसलके लिए मध्यम है; क्योंकि अतिवृष्टिके कारण फसल खराब हो जाती है। चैती फसल उत्तम होती है, अगहनीमें भी कमी नहीं आती; केवल कार्तिकीय फसलमें कमी आती है। मोटे अनाजोंकी उत्पत्ति कम होती है। श्रावणके महीनमें प्रत्येक वस्तु महँगी होती है। यदि रेवती नक्षत्रके तृतीय चरणमें वर्षा हो तो भाद्रपद मास सूखा जाता है; केवल हल्की वर्षा होकर रुक जाती है। आश्विनमासमें अच्छी वर्षा होती है, जिससे फसल साधारणतः अच्छी हो जाती है। श्रावणसे आश्विनमास तक सभी प्रकारका अनाज महँगा रहता है। अन्य वस्तुओंमें साधारण लाभ होता है। घी का भाव इस वर्षमें अधिक ऊँचा रहता है। मवेशीकी भी कमी रहती है, मवेशीमें एक प्रकारका रोग फैलता है, जिससे मवेशीकी क्षति होती है। द्वितीय चरणके अन्तमें वर्षा आरम्भ होनेपर वर्षके लिए अच्छा फलादेश होता है। गेहूँ, चना और गुड़का भाव प्रायः सस्ता रहता है, केवल मूल्यवान् धातुओंका भाव ऊँचा उठता है। खनिज पदार्थोंकी उत्पत्ति इस वर्षमें अधिक होती है तथा इन पदार्थोक व्यापारमें भी लाभ रहता है। रेवती नक्षत्रके तृतीय चरणमें वर्षा हो तो प्राय: अनावृष्टिका योग समझना चाहिए। श्रावणके पाँच दिन, भादोंमें तीन दिन और आश्विनमें आठ दिन जलकी वर्षा होती है। फसल निकृष्ट श्रेणीकी उत्पन्न होती है, वस्तुओंके भाव महँगे रहते हैं। देशमें अशान्ति और लूट-पाट अधिक होती है। चतुर्थ चरणमें वर्षा होनेसे समयानुकूल पानी बरसता है, फसल भी अच्छी होती है। व्यापारियोंके लिए भी यह वर्षा उत्तम होती है। यदि रेवती नक्षत्रका क्षय हो और अश्विनीमें वर्षा आरम्भ हो तो इस वर्ष अच्छी वर्षा होती है; पर मनुष्य और पशुओंको अधिक शीत पड़नेके कारण महान् कष्ट होता है। फसलको भी पाला मारता है। यदि अश्विनी नक्षत्रके प्रथम चरणमें वर्षा आरम्भ हो तो चातुर्मासमें अच्छी वर्षा होती है, फसल भी अच्छी उत्पन्न होती है। विशेषत: चैती फसल बड़े जोरकी उपजती है तथा मनुष्य और पशुओंको सुख-शान्ति प्राप्त होती है। यद्यपि इस वर्ष वायु और अग्निका अधिक प्रकोप रहता है। फिर भी किसी प्रकारकी बड़ी क्षति नहीं होती है। ग्रीष्म ऋतुमें लू अधिक चलती है, तथा इस वर्ष गर्मी भी भीषण पड़ती है। देशके नेताओंमें मतभेद एवं उपद्रव होते हैं। व्यापारियोंके लिए उक्त प्रकारकी वर्षा अधिक लाभदायक होती