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नवमोऽध्यायः
भावार्थ - जब राजा के प्रयाण समय में प्रतिलोम वायु होती है और वो अपसव्य मार्ग से निकले तो तब उस सेना का वध हो जाता है अर्थात् जिस ओर राजाकी सेना का प्रयाण हो रहा हो और उसी ओर वायु चले याने पूर्व दिशा में राजा का प्रयाण है और आगे से वायु चले तो समझो उस सेना का अवश्य ही वध होगा ।। ४५ ।।
अनुलोमो यदा स्निग्धः सम्प्रवाति नागराणां जयं कुर्यात् सुभिक्षं च
प्रदक्षिण: । प्रदीपयेत ॥ ४६ ॥
यदि वायु (अनुलोमो) अनुलोम मार्ग से (स्निग्ध:) स्निग्ध होकर ( प्रदक्षिण:) प्रदक्षिणा रूप ( यदा) जब (सम्प्रवाति) चले तो (नागराणां) नगरस्थराजा की (जयं ) जय को (कुर्यात् ) करती है (च) और ( सुभिक्षं) सुभिक्ष की (प्रदीपयेत ) सूचना प्राप्त होती है।
भावार्थ- -जब वायु अनुलोमी मार्ग होकर स्निग्ध होकर प्रदक्षिणा करती हुई चले तो नगरस्थ राजाकी विजय कराती है और सुभिक्ष होने की सूचना देती है ॥ ४६ ॥
दशाहं द्वादशाहं वा पापवातो यदा भवेत् । अनुबन्धं तदा विन्द्याद् राजमृत्युं जनक्षयम् ॥ ४७ ॥
( यदा) जब (पापवातो) अशुभ वायु (दशाहं ) दस दिन (वा) व ( द्वादशाहं ) बारह दिन (भवेत् ) तक होती है तो ( अनुबन्धं) सेना का बन्धन (राजमृत्यु) राजा का मरण ( जनक्षयम्) लोगों का क्षय ( तदा) तब ( विन्द्याद्) जानो ।
भावार्थ - यदि पाप वायु याने अशुभकारक बायु दस दिन या बारह दिन तक लगातार चलती रहे तो समझो राजा का मरण होगा, सेना का बन्धन होगा, प्रजा का क्षय होगा ॥ ४७ ॥
यदाभ्रवर्जितो
वाति वायुस्तूर्णमकालजः । पांशु भस्म समाकीर्णः सस्यघातो भयावहः ।। ४८ ।।
( यदा) जब (अभ्र) बादल (वर्जितो ) से रहित (वाति) वायु ( स्तूर्णं ) उत्पात