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भद्रबाह संहिता
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होती है तथा फसल भी साधारण ही होती है। जो व्यक्ति उक्त तिथिको अंजनवर्णके समान मेघोंका भी दर्शन प्रात:काल ही करता है, उसे राजमम्मान प्राप्त होता है, तथा किसी प्रकारकी उपाधि भी उसे प्राप्त हो है। रक्त वर्णके मेघका दर्शन इस दिन व्यक्तिगत रूपसे अनिष्टकारक माना गया है। यदि कोई व्यक्ति उक्त तिथिको मध्य रात्रिमें सछिद्र आकाशका दर्शन करे तथा दर्शन करने के कुछ ही समय उपरान्त वर्षा होने लगे तो व्यक्तिगत रूप से इस प्रकार के मेघ का दर्शन बहुत उत्तम होता है। पृथ्वीसे निधि प्राप्त होती है तथा धार्मिक कार्योंके करनेमें विशेष प्रवृत्ति बढ़ती हैं। संसार में जिन-जिन स्थानों पर उक्त तिथि को वर्षा करते हुए मेघ देखे जाते है। उन-उन स्थानों पर सुभिक्ष होता है तथा वर्तमान और आगामी दोनों ही वर्ष श्रेष्ठ समझे जाते हैं। पौषमासकी अमावस्याको आकाशमें बिजली चमकनेके उपरान्त वर्षा करते हुए मेघ दिखलाई पड़ें तो उत्तम फल होता है। इस दिन श्वेत वर्णके मेघोंका दर्शन बहुत शुभ माना जाता है। पौषमासकी अमावस्याको यदि सोमवार, शुक्रवार और गुरुवार हो और इस दिन मेघ आकाशमें घिरे हुए हों तो जलकी वर्षा आगामी वर्ष अच्छी होती है। फसल भी उत्तम होती है और प्रजा भी सुखी रहती है। यदि यही तिथि शनिवार, रविवार और मंगलवार को तथा आकाश निरभ्र हो या सछिद्र विकृत वर्णके मेघ आकाशमें आच्छादित हों तो अनावृष्टि होती है
और अन्न महँगा होता है। "डाक" कविने हिन्दीमें पौषमासकी तिथियोंको मेघोंका फलादेश निम्न प्रकार बतलया है
पौष इजोड़िया सप्तमी अष्टमी नवमी वाज।
डाक जलद देखे प्रजा, पूरण सब विधि काज॥ अर्थात्---पौष शुक्ला प्रतिपदा, सप्तमी, अष्टमी, नवमी तिथिको यदि आकाशमें बादल दिखलाई पड़े तो उस वर्ष वर्षा अच्छी होती है। धन-धान्यकी उत्पत्ति अधिक होती है और सर्वत्र सुभिक्ष दिखलाई पड़ता है। जो व्यक्ति उन तिथियोंमें प्रात:काल या सायंकाल मयूर और हंसाकृति के मेघों का दर्शन करता है, वह जीवनमें सभी प्रकारकी इच्छाओंको प्राप्त कर लेता है। उक्त प्रकार के मेघका दर्शन व्यक्ति और समाज दोनोंके लिए मंगल करनेवाला होता है।