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भद्रबाहु संहिता
२६; अ० १० श्लो० १६, ४५, ५३; अ० ११ श्लो० २६, ३०; अ० १२ श्लो० ३७, अ० १३ श्लो०७४, १००, १७८; अ० १४ श्लो० ५४, १३६; अ० १५ श्लो० ३७, ७३, १२८) लिखा मिलता है। इससे सहज में अनमान किया जा सकता है कि यह रचना भद्रबाह के वचनों के आध पर किसी अन्य विद्वान ने लिखी है। इस ग्रन्थ के पुष्पिका वाययों में भद्रबाहु के निमित्त 'भाबासहिताया, 'भद्रबानिमित्तशास्त्रे' लिखा मिलता है। ग्रन्थ की उत्थानिका में जो श्लोक आये हैं, उनसे निम्न प्रकाश पड़ता है
(१) इस ग्रन्थ की रचना मगध देश के राजगृह नामक नगर के निकटवर्ती पाण्डुगिरि पर राजा सेनजित् के राज्य काल में हुई होगी।
(२) यह ग्रन्थ सर्वज्ञ कथित वचनों के आधार पर भद्रबाहु स्वामी ने अपने दिव्य ज्ञान के बल से लिखा।
(३) राजा, भिक्षु, श्रावक एवं जन-साधारण के कल्याण के लिए इस ग्रन्थ की रचना की गयी।
(४) इस ग्रन्थ के रचयिता भद्रबाहु स्वामी दिगम्बर आम्नाय के अनुयायी थे।
जिस प्रकार मनुस्मृति की रचना स्वयं मनु ने नहीं की है, बल्कि मनु के वचनों के आधार पर की गयी है, फिर भी वह मनु के नाम से प्रसिद्ध है तथा मनु के ही विचारों का प्रतिनिधित्व करती है। इस रचना में भी मनु के विचारों का कथन मिलता है। इसी प्रकार भद्रबाहु संहिता भद्रबाहु के वचनों का प्रतिनिधित्व करती है?
ग्रन्थ की उन्थानिका में आये हुए सिद्धान्तों पर विचार करने से ज्ञात होता है कि उत्थानिका के कथन में ऐतिहासिक दृष्टि से विरोध आता है। भद्रबाहु स्वामी चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में हुए, जब कि मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में थी। सेनजित् या प्रसेनजित महाराज श्रेणिक या बिम्बसार के पिता थे। इनके समय में और चन्द्रगुप्त के समय में लगभग १५० वर्षों का अन्तराल है, अत: श्रुतकेवली भद्रबाहु तो इस ग्रन्थ के रचयिता नहीं हो सकते हैं। हाँ, उनके वचनों के अनुसार किसी अन्य विद्वान् ने इस ग्रन्थ की रचना की होगी।
___ "जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास" में देसाई ने इस ग्रन्थ के रचयिता वराहमिहिर के भाई भद्रबाहु को माना है। जिस प्रकार वराहमिहिरने बृह संहिता या वाराही संहिता की रचना की, उसी प्रकार भद्रबाहु ने भद्रबाहु संहिता की रचना की होगी। वराहमिहिर और भद्रबाहु का सम्बन्ध राजशेखर कृत प्रबन्धकोप (चतुर्विशति प्रबन्ध) से भी सिद्ध होता है। यह अनुमान स्वाभाविक रूप से संभव