________________
१०५
पंचमोऽध्याय:
अथवा सफेद रंग के बादलों में से बिजली शब्द करती हुई अथवा थोड़ी गर्जती हुई दिखे तो समझो अवश्य वर्षा होगी॥२२॥
मध्यमे मध्यम वर्ष अधमे अधम दिशेत् ।
उत्तमं चोत्तमे मार्गे चरन्तीनां च विद्युताम् ।।२३।। आकाश के (मध्यमें) मध्यमे चमके तो (मध्यम) मध्यम (वर्ष) वर्षा होती है और (अधमे) जघन्य मार्ग से चमके तो (अधमं) जघन्य वर्षा को (दिशेत्) दिखाती है यदि (विद्युताम्) बिजली (उत्तम) उत्तम (मार्गे) मार्ग से चमके तो (चोत्तमे) वह उत्तम वर्षा (चरन्तीनां) करती है आचरती है।
भावार्थ-यदि बिजली आकाश मार्ग में मध्यम चमके तो मध्यम वर्षा होती है, जघन्य दिखे तो जघन्य वर्षा होती है, उत्तम रूप से चमके तो उत्तम रीति से वर्षा होती है ऐसा जानना चाहिये । २३ ।
वीथ्यन्तरेषु या विधुच्चरतामफलं विदुः ।
आभीक्ष्णं दर्शयेच्चापि तत्र दूरगतं फलम् ॥ २४॥ (या) जो (विधु च) बिजली (वीथ्यन्तरेषु) चन्द्रमा की विथि के अन्दर में (चरताम्) चमकती है तो (अफलं विदु:) उसका कोई फल नहीं होता है, (अभीक्ष्णं) बार-बार (दर्शयेच्चापि) दिखाई पड़े तो (तत्र) उसका (दूरगतं फलम्) दूर जाकर फल होगा।
भावार्थ----जो बिजली चन्द्रमा की वीथी के अन्दर चमकती हुई दिखे तो समझो उसका कोई फल नहीं होगा और जो बार-बार भी चमकती है तो उसका फल दूर जाकर मिलेगा याने कुछ समय बाद होगा॥२४॥
उल्कावत् साधनं ज्ञेयं विधुतामपि तत्त्वतः ।
अथाभ्राणां प्रवक्ष्यामि लक्षणं तन्निबोधत ।। २५।। (उल्कावत्) उल्काओं के (साधनं) समान ही (विद्युतामपि) बिजली का (तत्त्वत:) ज्ञान (ज्ञेयं) जानना चाहिये। (अथ) अब (अभ्राणां) बादलों का (लक्षणं) लक्षण को (प्रवक्ष्यामि) कहूँगा (तन्निबोधत) उसको जानो।