________________
भद्रबाहु संहिता
१००
भावार्थ-यदि बिजली वायव्य कोण में चमके तो स्मरण रखो थोड़ी वर्षा होगी, उत्तर में चमकने वाली बिजली चाहे किसी भी वर्ण की क्यों न हो चाहे रूक्ष भी हो तो भी अदा नृष्टि कोगी ही करेगी।॥ ८
या तु पूर्वोत्तराविद्युत् दक्षिणा च पलायते।
चरत्यूर्वं च तिर्यंस्था साऽपि श्वेताजलावहा॥९॥ (या तु) जो (विद्युत) बिजली (पूर्वोत्तरा) ईशान कोण में (दक्षिणा च) दक्षिण में (चरत्यूचं) उर्द्धहोकर (तिर्यकस्था) तिरछी बहती हुई (फ्लायते) भागती है तो (साऽपि) वो भी (श्वेता) सफेद रंगकी हो तो (जलावहा) जल वर्षा करने वाली होती है।
भावार्थ-जो बिजली ईशान कोण से चमकती हुई दक्षिण दिशामें ऊपर होकर तिरच्छी बहती हई भागती है और वो भी सफेद रंग की हो तो, अवश्य ही जल वर्षा करने वाली होती है।। ९ ।।
तथैवोर्ध्वमधो वाऽपि स्निग्धा रश्मिमती भृशम् ।
सघोषा चाप्य घोषा वा दिक्षु सर्वासु वर्षति ।।१०।। (तथैव) उसी प्रकार (ऊर्ध्व) ऊपर (मधो) नीचे जाने वाली, (वाऽपि) और भी (स्निग्धा) स्निग्ध (रश्मिमती) बहुत रश्मि वाली (भृशम्) जानो (सघोषा) शब्द
करने वाली (चाप्य) और (घोषा वा) शब्द नहीं करने वाली बिजली चमके तो . (सर्वासु) सब (दिक्षु) दिशाओंमें (वर्षति) वर्षा होती है।
भावार्थ-यदि बिजली उर्द्ध व नीचे होती हुई स्निग्ध दिखे और बहुत रश्मि वाली हो कड-कड़ शब्द करती हुई हो तो और शब्द नहीं भी करती हो तो समझो सब दिशाओंमें वर्षा करने वाली होती है।।१०।।
शिशिरे चापि वर्षन्ति रक्ताः पीताश्च विद्युतः।
नीला: श्वेता वसन्तेषु न वर्षन्ति कथञ्चन ॥११॥ यदि (विद्युतः) बिजली (शिशिरे) शिशिर ऋतु में (रक्ताः) लाल, (पीताश्च) पीले रंग की हो तो, (वर्षन्ति) वर्षा करती है (कथञ्चन) कथञ्चन (वसन्तेषु)