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| चतुर्थोऽध्यायः ।
सूर्य परिवेष द्वारा भी राष्ट्रके भविष्यका विचार किया जाता है। चैत्र और वैशाखमें बिना बादलोंके आकाशमें सूर्य-परिवेष दिखलाई पड़े और यह कमसे कम डेढ़ घण्टेतक बना रहे तो राष्ट्रके लिए अत्यन्त अशुभकी सूचना देता है। इस परिवेषका फल तीन वर्षोंतक राष्ट्रको प्राप्त होता है। वर्षाका अभाव होने से तथा राष्ट्रके किसी हिस्सेमें अतिवृष्टिसे बाढ़, महामारी आदिका प्रकोप होता है। इस प्रकारका परिवेष राष्ट्रमें महान् उपद्रवका सूचक है। ऐसा परिवेष तभी दिखलाई पड़ेगा, जब देश के ऊपर महान् विपत्ति आयेगी। सिकन्दरके आक्रमणके समय भारतमें इस प्रकारका परिवेष देखा गया था। सूर्यके अस्तकालमें, जब नैर्ऋत्य दिशासे वायु बह रहा हो, इसी दिशासे वायुके साथ बढ़ता हुआ परिवेष सूर्यको आच्छादित कर ले तो राष्ट्रके लिए अत्यन्त शुभकारक होता है । देशमें धन-धान्यकी वृद्धि होती है। सभी निवासियोंको सुख-शान्ति मिलती है। अच्छे व्यक्तियोंका जन्म होता है। परराष्ट्रीसे सन्धियों होता हैं तथा राष्ट्रकी आर्थिक स्थिति दृढ़ होती है। देशमें कला-कौशलका प्रचार होता है नैतिकता, ईमानदारी और सच्चाईकी वृद्धि होती है।
परिवेषोंका व्यापारिक फलादेश-रविवारको चन्द्र-परिवेष दिखलाई पड़े तो रूई, गुड़, कपास और चाँदीका भाव महँगा, तिल, तिलहन, घी और तेलका भाव सस्ता होता है। सोनेके भावमें अधिक घटा-बढ़ी रहती है, तथा अनाजका भाव सम दिखलाई पड़ता है। फल और तरकारियोंके भाव ऊँचे रहते हैं। रविवारके चन्द्रपरिवेषका फल अगले दिनसे ही आरम्भ हो जाता है और दो महीनों तक प्राप्त होता है। जूट, मशाले एवं रत्नोंकी कीमत घटती है तथा इन वस्तुओंके मूल्योंमें निरन्तर घटा-बढ़ी होती रहती है। उक्त दिन को सूर्य-परिवेष दिखलाई पड़े तो प्रत्येक वस्तुकी महँगाई होती है तथा विशेष रूपसे तृण, पशु, सोना, चाँदी और मशीनों के कल-पुर्जीके मूल्यमें वृद्धि होती है। व्यापारियोंके लिए रविवारका सूर्य और चन्द्र-परिवेष विशेष महत्त्वपूर्ण होता है। इस परिवेष द्वारा सभी प्रकारके छोटे-बड़े व्यापारी लाभान्वित होते हैं। ऊन एवं ऊनी वस्त्रोंके व्यापारमें विशेष लाभ होता है। इनका मूल्य स्थिर नहीं रहता, उत्तरोत्तर मूल्यमें वृद्धि होती जाती है। सोमवारको सुन्दर आकार वाला चन्द्र-परिवेष निरभ्र आकाशमें दिखलाई पड़े तो प्रत्येक प्रकारकी वस्तु सस्ती होती है। विशेष रूपसे घृत, दुग्ध, तेल, तिलहन और अन्नका मूल्य